आम आदमी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान उसकी प्राथमिक जरूरतें होती है। हर आदमी चाहता है कि उसकी कम से कम इन बेसिक जरूरतों की पूर्ति तो आसानी से हो। लेकिन आजादी के 75 साल बाद भी समाज का एक बड़ा तबका ऐसा है जो अपने नून, तेल, लकड़ी जुटाने के लिए ही संघर्षरत है। इस गरीब व मध्यम वर्ग के लिए महंगाई का मुद्दा हमेशा अहम रहा है और रहेगा भले ही वर्तमान सरकार आजादी के अमृत काल में चाहे जितनी बड़ी—बड़ी बातें कर रही है और देश को विकसित देश बनाने का दावा कर रही हो लेकिन जिन लोगों के लिए भूख आज भी एक समस्या है और जिन्हे अपनी मूल जरूरतों के लिए मजदूरी करनी पड़ रही हो या भूखे पेट और नंगे बदन रहना पड़ रहा हो उनके लिए इस विकास का कोई मतलब नहीं रह जाता है। कहा जाता है कि ट्टदाल रोटी खाओ और प्रभु के गुण गाओ, लेकिन दाल रोटी भी खाने को जिसे न मिल पाए वह भूखे पेट भला प्रभु के गुण भी कैसे गा पाएगा? वर्तमान दौर में हम अपने आसपास के देशों में कुछ ऐसे ही हालात देख रहे हैं। पाकिस्तान में बढ़ती महंगाई के कारण हालात ऐसे हो गए हैं कि आटे के लिए लोगों में संघर्ष हो रहा है और लोग मर रहे हैं। आम आदमी को दाल, आटा जुटाना और भरपेट रोटी मिलना मुश्किल हो गया है जिसके कारण गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे ही हालात कुछ दिन पूर्व श्रीलंका में भी देखे गए जब आम आदमी सत्ता के खिलाफ सड़कों पर हिंसा और आगजनी करता नजर आया था। राष्ट्र भवन तक भी भीड़ घुस गई थी और देश की सत्ता चलाने वाले नेता अपनी जान बचाने के लिए इधर—उधर फिर रहे थे। इन देशों में यह हालात सिर्फ बढ़ती महंगाई के कारण ही उत्पन्न हुए थे। बीते कुछ सालों में भारत में भी आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में लगातार वृद्धि होती देखी गई है और इस वृद्धि को विकसित भारत से जोड़कर देखा जा रहा है। अर्थशास्त्री यही मानकर चल रहे हैं कि लोगों की क्रय शक्ति इतनी अधिक बढ़ चुकी है तभी वह 100 रूपये लीटर पेट्रोल और 95 रूपये लीटर डीजल खरीद कर भी कार में चल रहे हैं। लेकिन उनकी जो कार में चल रहे हैं तुलना बेकारो या बेरोजगारों से तो नहीं की जा सकती है। वर्तमान समय में देश में दाल, आटा, सब्जी और खाघ तेलों की कीमतें उस स्तर पर पहुंच चुकी है कि आम आदमी की क्रय शक्ति जवाब देती जा रही है। आज बाजार में सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। टमाटर, गोभी 160 रूपये किलो मिल रही है तो यह भी सोचने की जरूरत है कि क्या आम आदमी 160 और 150 रूपये किलो की सब्जी खरीद पा रहा है। अभी टमाटर के दाम 100 रूपये से नीचे थे तब जो लोग पहले एक किलो टमाटर खरीदते थे वह अब एक पाव खरीद कर काम चलाने पर आ गए हैं अब टमाटर, गोभी 160 और मटर 120 रूपये किलो मिल रहा है तो 70 फीसदी लोगों के रसोई से यह सब्जियां दूर हो चुकी है लेकिन सवाल यह भी है कि आम आदमी क्या—क्या खाना छोड़ सकता है अन्य तमाम सब्जियां भी 60 से 100 रूपये के बीच ही हैं तथा दालें 110 से लेकर 160 रूपये किलो के बीच है। निश्चित तौर पर खाघ वस्तुओं की यह महंगाई भले ही अमीर तबको को न महसूस हो रही हो या इसका उन पर कोई प्रभाव न पढ़ रहा हो लेकिन गरीब व आम आदमी को अब बहुत चुभ रही हैं जिसे नियंत्रित करने की सख्त जरूरत है।