सांप्रदायिक सद्भाव पर सवाल

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किसी एक ही समय और कालखंड में किसी क्षेत्र या राष्ट्रीय विशेष में एक ही जैसी घटनाओं का प्रकृटिकरण यूं ही नहीं होता है या तो ऐसी घटनाओं के पीछे किसी खास लक्ष्य को हासिल करने का षड्यंत्र होता है या फिर किसी समस्या से आंखें मूंद लेने के कारण होता है। उत्तराखंड की राजनीति और समाज मेंं इन दिनों दो तरह के मुद्दे छाए हुए हैं पहला मुद्दा है लव जिहाद का जो राज्य की बेटियों और महिलाओं की इज्जत आबरू से जुड़ा है, और दूसरा मुद्दा है लैंड जिहाद का जो धर्म और धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है इन दोनों ही मुद्दों की मारक क्षमता क्या है इसे सभी जानते हैं। जर—जोरू और जमीन किसी भी बड़े से बड़े अपराध तक पहुंचाते हैं वही धर्म वह अफीम की गोली है जिसका नशा कभी नहीं उतरता। इन दिनों प्रदेश के तमाम हिस्सों से मुस्लिम युवकों द्वारा हिंदू महिलाओं को बहला—फुसलाकर उनको भगा कर ले जाने का या उनका शारीरिक शोषण करने तथा धर्मांतरण कराने के लिए दबाव डालने की खबरें इतनी आम हो चुकी है कि हर रोज कहीं न कहीं से एक नई खबर सामने आ रही है जिन्हें लेकर पूरा पहाड़ आक्रोश की आग में जल रहा है। महिलाओं की अस्मिता और धर्म से जुड़े इन मुद्दों ने आज हिंदु व मुसलमानों को आमने सामने खड़ा कर दिया है वहीं दूसरी तरफ मजारों और मंदिरों को तोड़े जाने और मूर्तियों को खंडित किए जाने के समाचार हैं जिनकी बाढ़ आई हुई है। सवाल यह है कि इन दोनों ही मुद्दों को अब तक इतनी हवा मिल चुकी है कि यह आग अब बहुत आसानी से या बहुत जल्द शांत होती हुई नहीं दिख रही है वहीं दूसरा सवाल यह है कि क्या इसके पीछे कोई सोचा समझा षड्यंत्र है जैसा कि प्रचारित किया जा रहा है या फिर एक ऐसी समस्या है जिस पर लंबे समय से किसी का ध्यान ही नहीं गया था या जिसे नजरअंदाज किया जाता रहा है? अगर राज्य में किसी समुदाय विशेष द्वारा कुछ गलत किया जा रहा था चाहे वह सरकारी जमीनों पर मजार बनाने और जमीनों पर अतिक्रमण करना हो या लड़कियों व महिलाओं को फंसा कर उनका गलत इस्तेमाल किया जाना हो इस तरह की घटनाएं अगर हो रही थी तो उन्हें पहले क्यों नहीं रोकने का प्रयास किया गया अब जब पानी नाक तक आ गया है तभी क्यों सरकार और समाज को यह सारी समस्याएं नजर आ रही हैं। प्रदेश के सांप्रदायिक सौहार्द और भाईचारे की बात तो अब इतनी आगे बढ़ चुकी है कि इस पर कोई गौर किया जा सके ऐसे हालात भी शेष नहीं बचे हैं। देव भूमि उत्तराखंड की शांत वादियों में सांप्रदायिकता का जो रंग इन वारदातों के कारण भरा जा रहा है वह समाज के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। हो सकता था कि इन मामलों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटा लिया जाता लेकिन इन समस्याओं पर अब राजनीतिक दखल के चलते खेल खराब और खराब होता जा रहा है आज तक उत्तराखंड का समाज और राजनीति इन मुद्दों से दूर बने रहे थे लेकिन अब हालात बदल चुके हैं 15 जून को पुरोला और 18 जून को दून में दोनों समुदायों की महा पंचायतों के बाद ही अब पता चल सकेगा कि हवा का रुख क्या रहता है फिलहाल राज्य के सुख—चैन और शांति के लिए यह मुद्दे राहु और केतु बने हुए हैं।

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