ट्टसबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास’ का नारा देने वाली मोदी सरकार अमेरिकी विदेश मंत्रालय से आई उस रिपोर्ट को लेकर भन्नाई हुई है जिसमें देश में राष्ट्रीय स्तर व प्रांतीय स्तर पर धार्मिक आधार पर उन्माद बढ़ने और उसका कारण सरकार की भेदभाव पूर्ण नीतियों को बताया गया है। अमेरिका की इस रिपोर्ट पर भारत के विदेश मंत्रालय ने इसे भारत के खिलाफ दुष्प्रचार और षड्यंत्र बताते हुए नकार दिया है। यह कोई ऐसा पहला मामला नहीं है जब भारत के विदेश मंत्रालय ने विदेश से आने वाली किसी खबर को नकारा गया हो। बात चाहे अशिक्षा की हो, भूखमरी की हो या बाल श्रम की हो या फिर प्रेस की आजादी की विदेश से आने वाली ऐसी हर खबर का खंडन करना एक परंपरा जैसा ही हो गया है। आज देश में सवा करोड़ बाल श्रमिक हैं देश की 30 फीसदी आबादी रोज कमाती और खाती है। करोड़ों लोगों के पास रहने के लिए अपना घर तक नहीं है अगर सबके पास अपना घर होता तो देश में प्रधानमंत्री आवास योजना चलाने की शायद जरूरत नहीं होती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़े गर्व से यह बताते हैं कि उनकी सरकार 35 करोड लोगों को मुफ्त राशन मुहैया करा रहे हैं। जिसके घर में खाने को पर्याप्त राशन होगा वह भला क्यों मुफ्त का 10—20 किलो राशन लेने के लिए राशन की लाइनों में जाकर खड़ा होगा। धर्मांतरण की घटनाओं के पीछे अहम कारण गरीबी भुखमरी और अशिक्षा ही रहा है। देश की सरकारें धर्मांतरण की तो मुखालफत करती रही हैं लेकिन इन गरीबों की मदद के लिए कभी कुछ करने को तैयार नहीं हुई। बीते वर्षों में धर्मांतरण के खिलाफ राष्ट्रवादी संगठनों की आक्रामकता बढ़ी है तथा अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और हिंसा के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। धार्मिक कटृरता को हम ऐसे समय में भला कैसे नकार सकते हैं जब देश के अंदर सर तन से जुदा के नारे आम बात हो चले हो। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी रिपोर्ट पर हमारी सरकार सफाई क्यों दे रही है या उसे षड्यंत्र क्यों बता रही है अगर देश में सब कुछ ठीक—ठाक चल रहा है तो हमारे विदेश मंत्रालय को अमेरिकी विदेश मंत्रालय से इसके सबूत क्यों नहीं मांगे जा रहे हैं भारत सरकार को चाहिए कि अमेरिका को कहे कि किस आधार पर उसने ऐसा कहा है। देश का संविधान कहता है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जो सभी जाति धर्म के लोगों को समानता का अधिकार देता है लेकिन अगर कोई संगठन या समुदाय उसे धार्मिक आधार पर बांटने का प्रयास करेगा तो वह गैर संवैधानिक ही होगा। अमेरिका की इस रिपोर्ट को अगर भारत सरकार अपने आंतरिक मामलों में दखल बताकर खारिज कर रही है तो यह उचित माना जा सकता है क्योंकि हम एक संप्रभु राष्ट्र हैं एक ऐसा राष्ट्र जो न किसी दूसरे राष्ट्र के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करता है और न अपने आंतरिक मामले में किसी दूसरे राष्ट्र की हस्तक्षेप बर्दाश्त करता है। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका में आए दिन होने वाले शूटआउट क्या हैं क्या इनकी पृष्ठभूमि में नस्लवाद और धार्मिक कारण नहीं है? अमेरिका को भारत की तरफ उंगली उठाने से पहले अपने यहां हर साल होने वाले उन सैकड़ों शूटआउट पर गौर करने की जरूरत है जिसमें हजारों बेगुनाह लोग मारे जाते हैं जिसमें बच्चे व महिलाएं भी शामिल हैं। अमेरिका को किसी को नसीहत की वास्तव में कोई जरूरत नहीं है क्योंकि भारत अपनी हर समस्या का समाधान करने में सक्षम है