राज मिला तो ताज की लड़ाई

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एमसीडी और गुजरात चुनाव में करारी हार के बीच कांग्रेस को हिमाचल में जीत मिली और वह भी पूर्ण बहुमत के साथ तो ऐसा लगा कि यह किसी मृत संजीवनी से कम नहीं है। लेकिन राज मिलने के साथ ही कांग्रेसियों में ताज के लिए जिस तरह की सिर फुट्टवल देखी जा रही है उसे लेकर सरकार गठन से पूर्व ही इस तरह की संभावनाएं जताई जाने लगी है कि हिमाचल भी मध्यप्रदेश पार्ट—टू बनने जा रहा है। भले ही इस समय कोई भी सीएम बन जाए कांग्रेस में टूट—फूट की संभावनाएं हमेशा ही बनी रहेगी और भाजपा कभी भी कांग्रेसियों की बगावत का फायदा उठाकर हिमाचल की सत्ता को हथिया सकती है। हिमाचल के चुनावी नतीजे आ रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलना संभव न हो या वह पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 35 के आसपास ही रहे लेकिन अंतिम परिणाम आते—आते वह 40 सीटों पर जीत के साथ निश्चिंत हो गई कि अब उसे सत्ता में आने और 5 साल तक सरकार चलाने में किसी तरह की दिक्कतें आने वाली नहीं है लेकिन सरकार गठन से पूर्व ही जिस तरह स्व. वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह और प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के समर्थक दो पालों में खड़े दिखाई दे रहे हैं उससे साफ संकेत मिल रहे हैं कि सीएम भले ही कोई भी बने हिमाचल की सरकार पर अस्थिरता की तलवार हमेशा ही लटकी रहेगी। प्रतिभा सिंह का मानना है कि चुनाव उनके परिवार के नाम पर लड़ा गया इसका पूरा श्रेय किसी और को मिले यह उन्हें कतई गवारा नहीं है इस सीएम पद की दौड़ में एक तीसरा नाम है मुकेश अग्निहोत्री का जो 5 बार के विधायक हैं ऐसे में उनकी दावेदारी को खारिज कर सुखविंदर सिंह को सीएम की कुर्सी पर बैठाना भी पार्टी के विधायकों को गवारा नहीं होगा। हालात यह है कि अब ताज के लिए सभी अपने अपने साथ कितने विधायक हैं इसका भी दम दिखा रहे हैं कल दिन से लेकर देर रात तक चले हाईवोल्टेज ड्रामे और नारेबाजी के बाद अब पार्टी हाईकमान पर फैसला छोड़ा जरूर गया है लेकिन ताज की इस लड़ाई की परिणीति कभी भी उस कहानी को चरितार्थ कर सकती है जिसमें एक रोटी को लेकर दो बिल्लियां लड़ रही होती है और बंदर बटवारा करने के नाम पर खुद सारी रोटी को चट कर जाता है। दरअसल कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की कमजोरी और पार्टी में अनुशासन की कमी के कारण ही यह सब हो रहा है। सच पूछा जाए तो यह चुनाव कांग्रेस को प्रियंका गांधी ने जिताया है। इस लिहाज से प्रियंका गांधी को हिमाचल का सीएम बना देना चाहिए। कांग्रेसी नेता जो आए दिन कांग्रेस के पतन पर चिंतन—मंथन करने में जुटे रहते हैं उन्हें यह छोटी सी बात भी क्यों नहीं समझ में आती कि पार्टी की इस दुर्दशा के लिए पार्टी नेताओं पर हावी निजी स्वार्थों की वह राजनीति ही है जिसमें इन नेताओं को बस सीएम की कुर्सी चाहिए। बात चाहे उत्तराखंड की हो या एमपी की या फिर हिमाचल की अथवा राजस्थान की इन कांग्रेसी नेताओं को सिर्फ अपनी ही फिक्र है कांग्रेस की चिंता किसी को नहीं है।

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