कांग्रेस का विचार मंथन

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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेसी नेता हैरान परेशान हैं सभी राज्यों में उसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा है। पंजाब जहां उसकी सरकार थी वहां तो उसकी हार हुई ही है साथ ही मणिपुर, उत्तराखंड व गोवा में उसे आशातीत परिणाम नहीं मिल सके। उत्तराखंड में उसका सरकार बनाने का सपना ही नहीं टूटा है बल्कि अब उसका आगे का सफर और भी मुश्किल हो गया है। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है वहां उसका आगे बढ़ने का कोई अवसर नहीं दिख रहा है। दो दशक पूर्व शुरू हुआ अवनति का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस हार के बाद काग्रेस में खलबली का माहौल है। दिल्ली में तमाम दिग्गज इस हार को लेकर एक दूसरे पर आरोप—प्रत्यारोप लगा रहे हैं तथा राष्ट्रीय संगठन में बड़े फेरबदल की मांग कर रहे हैं, वहीं तमाम राज्यों में इस हार को लेकर इस्तीफे मांगने और कुर्ता घसीटन जारी है। आज से उत्तराखंड में कांग्रेसियों का विचार मंथन होने जा रहा है जिसमें हार के कारणों पर चर्चा की बात की जा रही है। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस नेता इस विचार मंथन से हार के उन कारणों तक पहुंच पाएंगे? जिनके कारण हार हुई है? ऐसा नहीं है कि कांग्रेसी नेता जानते नहीं हैं कि पार्टी की इस दुर्दशा का कारण क्या है? वह जानते तो है लेकिन उसे मानने को तैयार नहीं होते हैं। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी समस्या की वजह है पार्टी द्वारा दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेताओं और कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने का मौका न दिया जाना। पार्टी ने अपनी दूसरी और तीसरी पंक्ति को तैयार ही नहीं होने दिया जो बड़े नेता कहे जाते हैं वह अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अपने से छोटे नेताओं और कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल सिर्फ अपनी गुटबाजी के लिए करते हैं न कि उन्हें आने वाले कल का नेता बनाने के लिए। पार्टी के लिए काम करने वाले नेता और कार्यकर्ताओं को जब आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया जाता है तो उनकी हताशा पार्टी की हार का कारण बन जाती है। कांग्रेस का संागठनिक ढांचा इस कदर कमजोर हो चुका है कि जिला, तहसील और ब्लॉक से लेकर पंचायत स्तर तक पहुंचते—पहुंचते वह शून्य स्तर पर पहुंच चुका है। पार्टी में युवा नेताओं और कार्यकर्ताओं की कोई अहमियत ही नहीं रह गई है। यही कारण है कि युवा नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग होता जा रहा है और वह पार्टी छोड़ कर भाग रहे हैं। कांग्रेस ने समय के साथ पार्टी को तकनीकी स्तर पर मजबूत बनाने का प्रयास नहीं किया है। सोशल मीडिया, फेसबुक और ट्विटर के सत्ता पर दुरूपयोग का आरोप लगाने और लोकतंत्र के लिए इसे घातक बताने वाली कांग्रेस ने कभी खुद इसकी शक्तियों को क्यों नहीं पहचाना। कांग्रेस भले ही इसका दुरुपयोग नहीं करती लेकिन वह इसका उपयोग तो कर ही सकती थी। कांग्रेसियों की सोच रही है कि कांग्रेस जब भी नीचे गिरी तब तब और मजबूत होकर ऊपर उठी है अगर यही ठीक है तो फिर कांग्रेसी बैठे रहे इसी के इंतजार में उन्हें कुछ भी करने की जरूरत नहीं है क्योंकि कांग्रेस को तो फिर से उठने का वरदान प्राप्त है।

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