बच्चों की सुरक्षित वापसी का सवाल

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यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की सुरक्षित स्वदेश वापसी के लिए किए जा रहे प्रयासों के बीच बीते कल कर्नाटक के रहने वाले छात्र की मौत की खबर ने उन अभिभावकों की चिंताओं को और अधिक बढ़ा दिया है जिनके बच्चे अभी युद्ध ग्रस्त क्षेत्रों में फंसे हुए हैं। भारत सरकार द्वारा यूक्रेन के खराब होते हालातों के मद्देनजर अब अपने अभियान गंगा को और अधिक तेज कर दिया गया है। अपने चार मंत्रियों को यूक्रेन सीमा से सटे देशों में भेजने के अलावा अब वायु सेना सी—17 ग्लोबमास्टर जैसे विमानों को भी इस काम में लगा दिया गया है। भारत सरकार का दावा है कि अब सिर्फ चार हजार के आसपास ही छात्र यूक्रेन में शेष बचे हैं जबकि अब तक कुल सवा दो हजार के करीब छात्रों को ही इस अभियान के तहत 10 उड़ानों के माध्यम से लाया जा सका है। सवाल यह है कि जब युद्ध शुरू हुआ था तब 18 से 20 हजार भारतीय छात्रों के यूक्रेन में होने की बात कही गई थी। सरकार का कहना है कि २० फरवरी को जब पहली एडवाइजरी जारी की गई थी तब आठ हजार के करीब छात्र वापस लौट आए थे। अगर यह सच भी है तो अब तक 10 हजार छात्र वापस आ चुके हैं शेष 8 हजार के बारे में सरकार का कहना है कि 4 हजार के करीब छात्र यूक्रेन के पड़ोसी देशों में चले गए हैं सिर्फ चार हजार के करीब ही ऐसे छात्र शेष बचे हैं जो अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं। लेकिन 4 हजार की संख्या भी बहुत बड़ी संख्या है। सरकार का यह भी कहना है कि राजधानी कीव में अब एक भी भारतीय नहीं है। जबकि कल तक यहां से खबर आ रही थी कि बड़ी संख्या में अभी भी छात्र यहां फंसे हुए हैं। बात अगर उत्तराखंड की की जाए तो अब तक उत्तराखंड के सिर्फ 32 छात्रों की ही वापसी हो सकी है जबकि सीएम धामी के अनुसार 300 छात्र अभी भी यूक्रेन में फंसे हैं। युद्ध जनित स्थितियों में सच क्या है इसका आकलन किया जाना कठिन और मुश्किल जरूर है लेकिन इसमें अभी कोई संदेह नहीं है कि बड़ी संख्या में भारतीय छात्र यूक्रेन में फंसे हुए हैं। जिन्हें सुरक्षित वापसी की चुनौती तो है ही साथ ही यह बहुत मुश्किल काम है। रूस के आक्रमक रुख के कारण यूक्रेन के हालात दिनोंदिन गंभीर होते जा रहे हैं। इसलिए यह चुनौती और भी बड़ी होती जा रही है तथा छात्रों की जान का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। युद्ध से पूर्व भारत सरकार ने इन छात्रों की वापसी के उचित और गंभीर प्रयास नहीं किए गए। सरकार ने जो विवान सेवा उपलब्ध कराई उसका किराया एक लाख बीस हजार था जो अत्यधिक था। जिसे छात्र वहन नहीं कर सकते थे। युद्ध थमने के आसार अभी दूर—दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं ऐसी स्थिति में बाकी बचे छात्रों को कैसे वापस लाया जा सकेगा? यह एक यक्ष प्रश्न है। सरकार को चाहिए कि वह युद्ध ग्रस्त यूक्रेन में फंसे छात्रों की सुरक्षित वापसी के लिए रूस से भी वार्ता करें और रेड प्लस जैसी वैश्विक संस्थाओं की मदद ले जो युद्ध काल में घायल व पीड़ितों की मदद करती है।

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