कोरोना से बचाव के लिए आज से देश भर में 15 से 18 वर्ष आयु वर्ग के किशोर और किशोरियों को वैक्सीन का टीका लगाने का काम शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी घोषणा नवंबर माह में ही कर दी थी वही 10 जनवरी से कोरोना वारियर्स और फ्रंट लाइन वर्करों को तथा गंभीर रूप से बीमार बुजुर्गों को बूस्टर डोज दिए जाने की बात भी कही गई है। कोरोना से निपटने के लिए देश ही नहीं पूरे विश्व में अपने—अपने स्तर पर सभी सरकारें काम कर रही हैं। एशिया, यूरोप और अफ्रीकी देशों में पहले ही बच्चों को वैक्सीन दिए जाने का काम शुरू हो चुका है। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस तथा चीन सहित अनेक देशों में बूस्टर डोज भी दी जा रही है लेकिन इन तमाम प्रयासों के बीच कोरोना को समझ पाना और उसका कोई सटीक इलाज ढूंढ पाना पूरे विश्व के लिए अभी चुनौती बना हुआ है। दरअसल कोरोना की पहली लहर के दौरान इसे व्यस्कों और बूढ़ों में होने वाली बीमारी के तौर पर देखा गया और उन्हीं के लिए दवा तथा वैक्सीन बनाने पर काम शुरू किया गया लेकिन अब जब देश और दुनिया में इसकी तीसरी लहर शुरू हो चुकी है यह साफ हो गया है कि इसका असर किसी भी आयु वर्ग को हो सकता है यहां तक कि साल भर से कम आयु तक के बच्चों को भी कोरोना हो सकता है। ऐसी स्थिति में हर आयु वर्ग की सुरक्षा जरूरी है। यह अच्छा है कि अब 15 से 18 वर्ष के बीच वाले बच्चों का टीकाकरण शुरू किया गया है लेकिन यह सिलसिला यहीं थमने वाला नहीं है इसके बाद 5 से 15 साल के आयु वर्ग के बच्चों के लिए भी टीकाकरण की व्यवस्था करना लाजमी होगा। एक खास बात यह है कि आज तमाम राष्ट्रों द्वारा जिस बूस्टर डोज की जरूरत महसूस की जा रही है उसके पीछे का प्रमुख कारण है वैक्सीन का 6 से 9 माह तक ही प्रभावकारी रहना। ऐसे बूस्टर डोज यानी तीसरा टीकाकरण कितने दिन तक सुरक्षा दे सकेगा यह भी एक अहम सवाल है और अगर कोरोना का कोई ऐसा टीका नहीं बन पाया कि जो पूरे उम्र सुरक्षा दे पाए? तब क्या हर साल हर व्यक्ति को इसी तरह 3—3 टीके लगवा कर अपनी जान की सुरक्षा करनी पड़ेगी? कोरोना जिसे बहरूपिया बताकर यह कहा जाता रहा है कि वह हर बार नया रूप धारण कर रहा है तथा इसके नये—नये वैरीयंट सामने आ रहे हैं ऐसे में इसका कोई टीका बना पाना संभव नहीं हो सकता है क्योंकि कोई भी टीका सभी वैरीयंट पर कारगर नहीं हो सकता ? यही कारण है कि कोरोना को समझ पाना और उससे पूर्ण रूप से छुटकारा मिल पाना संभव नहीं हो पा रहा है कुछ वैज्ञानिकों ने तो अब यहां तक कहना शुरू कर दिया है कि हमें कोरोना के साथ रहकर ही जीना सीखना होगा? जो भले ही असंभव न सही लेकिन मुश्किल जरूर होगा।