कुछ तो गुल खिलाएगी बगावत

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उत्तराखंड विधानसभा की 70 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में 755 उम्मीदवारों ने पर्चा भरा है। आज नामांकन पत्रों की जांच और 31 जनवरी तक नाम वापसी के बाद ही यह सुनिश्चित हो जाएगा कि कुल कितने प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। इस बार भी मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होने जा रहा है लेकिन दो पहलू ऐसे भी हैं जो इस बार के चुनावी समीकरणों को गढ़बड़ा सकते हैं। इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में टिकट न मिलने से नाराज नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में पार्टी से बगावत कर निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर अपना नामांकन कराया है। अब अपने इन बागियों को मनाने के लिए सिर्फ इन राजनीतिक दलों के पास 3 दिन का समय है। कितने बागी नाम वापस लेने को तैयार होते हैं और कितने नहीं यह आने वाला समय ही बताएगा। नामांकन से पूर्व दल—बदल ने इस बगावत का और भी हवा देने का काम किया क्योंकि इन दलों ने अपने पुराने नेताओं की जगह पार्टी में आए नए लोगों को अधिक तवज्जोह दी। राज्य की 70 में से 2 दर्जन से अधिक सीटें ऐसी है वहां या तो बागी प्रत्याशी नामांकन करा चुके हैं या फिर जिन्होंने पर्चा नहीं भरा है लेकिन वह नाराज है। यानी साफ तो यह है कि वह अब भितरघात के जरिए अपनी पार्टी के प्रत्याशियों को हराने का काम करने वाले हैं। बात अगर दून की सीटों की ही करे तो यहां रायपुर, कैंट, धर्मपुर तथा राजपुर की सीटों पर बड़ी बगावत देखी जा रही है। धर्मपुर सीट पर भाजपा के बागी वीर सिंह अपना नामांकन करा चुके हैं वहीं कैंट में सविता कपूर के खिलाफ भाजपा के बागी दिनेश रावत ने पर्चा भर दिया है। रायपुर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी हीरा सिंह बिष्ट के खिलाफ सूरत सिंह नेगी भी निर्दलीय चुनाव लड़ने को मैदान में कूद पड़े हैं। वही राजपुर सीट पर कांग्रेस के बागी संजय कनौजिया ने भी अपना नामांकन कर दिया है। बात किसी एक सीट की नहीं है पूर्व सीएम हरीश रावत के खिलाफ भी संध्या डालाकोटी बगावत कर चुनाव में उतर गई है। रुद्रपुर में भाजपा विधायक ठुकराल तो कालाढूंगी से भाजपा के गजराज और धनोल्टी से महावीर सिंह रांगण ने अपनी पार्टी के विरुद्ध नामांकन कर बगावत का शंख फूंक दिया है। पहाड़ से लेकर मैदान तक 2 दर्जन से अधिक नेता टिकट न मिलने से आगबबूला है और उनका दावा है कि वह खुद चुनाव जीते या न जीते और चुनाव लड़े या न लड़े लेकिन अपने पार्टी के प्रत्याशी को भी जीतने नहीं देंगे। भले ही भाजपा व कांग्रेस के शीर्ष नेता इस बगावत से इंकार करें या रूठोें को मनाने की बात करें लेकिन 2022 के चुनाव से पूर्व भाजपा और कांग्रेस दोनों की मुश्किलें इन बागियों ने बढ़ा दी है। यह बगावत और भितरघात क्या गुल खिलाती है? आने वाला समय ही बताएगा। वहीं दूसरी तरफ सूबे में पहली बार चुनाव लड़ रही आप तथा सपा—बसपा कम से कम वोट कटवा पार्टियों की भूमिका में है इन्हें चाहे कितना भी कम वोट मिले लेकिन यह भाजपा व कांग्रेस किसे अधिक प्रभावित करता है? यह भी अहम सवाल है। भाजपा व कांग्रेस किसी के लिए भी इस कारण यह चुनाव आसान रहने वाला नहीं है।

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