आ गई तीसरी लहर!

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देश में एक बार फिर कोरोना ने रफ्तार पकड़ ली है। बीते कल देश में 24 घंटे में 58 हजार से अधिक नए केस रिपोर्ट किए गए जो इससे पहले दिन के केसों से 20 हजार से भी अधिक हैं। बात अगर बीते दिनों की करें तो यह संख्या 33 हजार के करीब थी कुछ दिन बाद 58 हजार से अधिक हो गई वहीं मौतों का आंकड़ा भी दो दिन में दो गुना से अधिक बढ़कर 534 पर जा पहुंचा है। जहां तक ओमीक्रोन की बात है देश में अब तक ओमीक्रोन के 22 सौ से अधिक मरीज मिल चुके हैं। देश में ओमीक्रोन की टेस्टिंग बहुत कम हो रही है यदि टेस्टिंग की सही व्यवस्था हो तो कुल नए केसों में ओमीक्रोन के 50 फीसदी केस भी हो सकते हैं। जहां तक उत्तराखंड की बात है यहां 29 दिसंबर को 38 नए केस मिले थे जो 4 जनवरी यानी सिर्फ 7 दिन बाद 310 हो गए हैं। कोरोना के डेल्टा और ओमीक्रोन वैरीयंट ने मिलकर कोरोना संक्रमण को 8 गुना तेज कर दिया है। अब तक स्थिति विस्फोटक रूप ले चुकी है और कोरोना की वर्तमान रफ्तार को देखकर ऐसा लग रहा है कि अगले एक सप्ताह में प्रतिदिन नए मरीजों की संख्या दो लाख तक भी पहुंच सकती है तब जाकर केंद्र तथा राज्यों की सरकारों के कानोंं पर जूं रेंगना शुरू हुई है। देश के नेताओं को इस तीसरी लहर का संकेत बहुत पहले ही मिल चुका था लेकिन चुनाव के मद्देनजर उनके द्वारा इसे जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा था। नेता चुनावी सभा और रैलियों में मस्त और व्यस्त दिख रहे हैं और लोगों की जान की परवाह किए बगैर लाखों लाख लोगों की भीड़ सभाओं और रैलियों में जमा कर रहे हैं। वही राज्यों की सरकारें मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग और टेस्टिंग को लेकर खानापूर्ति कर रही है। नाइट कर्फ्यू जिसका कोई लाभ नहीं जैसी पाबंदियां लगाकर नाहक आम आदमी को परेशान किया जा रहा है। वहीं तीसरी लहर से निपटने की तैयारियों के खोखले दावे किए जा रहे हैं। केंद्र व राज्य सरकारों के पास सुरक्षा तैयारियों के लिए सही मायने में समय ही नहीं है तमाम नेता पार्टी की बैठकों व चुनाव प्रचार में दिन रात लगे हुए हैं। एक—एक नेता एक—एक दिन में तीन—तीन रैलियां कर रहा है। उनके पास न न्यायपालिका के सुझावों पर विचार करने का समय है न आम आदमी की सुरक्षा पर, उन्हें सिर्फ चुनाव दिखाई दे रहा है। दूसरी लहर के दौरान देश के लोगों ने जिन दर्दनाक स्थितियों को झेला था उसकी मुख्य वजह सरकारी तंत्र की लापरवाही थी। ठीक वैसे ही हालात एक बार फिर बनते दिख रहे हैं लेकिन इन नेताओं और सरकारों द्वारा आज भी कोरोना प्रबन्धन की सफलता का ढोल तो पीटा जा रहा है उससे सबक लेने की जरूरत महसूस नहीं की जा रही है। स्कूल कॉलेज फिर से बंद होने लगे हैं, वही वीकेंड कर्फ्यू, वर्क फ्रॉम होम शुरू हो चुका है। भले ही स्थिति कितनी भी गंभीर हो जाए पहले की तरह पूर्ण कोरोना लॉकडाउन न करने की ठाने बैठी सरकारों को अगर तीसरी लहर की विभीषिका का जरा भी खौफ है तो उन्हें तत्काल प्रभाव से सख्त कदम उठाने चाहिए, वही एक बार फिर से घोर लापरवाही बरतने वाली जनता को भी सावधान होने की जरूरत है अन्यथा इसके खतरनाक परिणामों से बचा नहीं जा सकेगा।

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