देवस्थानम बोर्ड पर भाजपा की फजीहत

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सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं की बीते कल केदारधाम में देवस्थानम बोर्ड के मुद्दे पर जो फजीहत हुई वह बेवजह नहीं है। नवंबर 2019 में इस बोर्ड के गठन के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा कैबिनेट बैठक में लाए गए प्रस्ताव के समय से ही तीर्थ पुरोहित और हक हकूक धारियों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है। सरकार ने जल्दबाजी में इस प्रस्ताव को न सिर्फ विधानसभा में पारित करवा दिया बल्कि जनवरी 2020 में इस पर राजभवन का भी ठप्पा लगवा दिया गया। अच्छा होता कि इस मुद्दे पर आंदोलन कर रहे तीर्थ पुरोहितों की बात त्रिवेंद्र सरकार और उनके बाद आए मुख्यमंत्रियों तीरथ तथा धामी ने गंभीरता से सुनी होती। दरअसल भाजपा नेताओं की कोशिश उनकी बात सुनने या उसका हल निकालने से ज्यादा इसे टालने की ही रही। तीरथ इस पर पुनर्विचार करने का झांसा देते रहे वहीं अब धामी इस मुद्दे पर समिति बनाने तथा सर्व सम्मत समाधान निकालने की बात करने तक ही सीमित रहें। जिसका नतीजा कल हमें भाजपा नेताओं के कुर्ता घसीटन के रूप में देखने को मिला। आंदोलित तीर्थ पुरोहितों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को तो मंदिर में घुसने ही नहीं दिया गया भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और मंत्री धन सिंह रावत के कपड़े फाड़ने तक की नौबत आ गई। इस घटना के बाद अब उन्हें यह समझ आ गया है कि पीएम के 5 नवंबर के दौरे के दौरान क्या हो सकता है या अगर देवस्थानम बोर्ड के फैसले को वापस नहीं लिया तो चुनाव में भाजपा को इसका कितना बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। दरअसल भाजपा के नेता अपने प्रचंड बहुमत के कारण यह भूल चुके हैं कि उनके यह कहने से काम नहीं चल सकता है कि वह सभी की सहमति से और सब के हितों की रक्षा के लिए काम करेंगे उन्हें वैसा करके दिखाना भी पड़ेगा। उनकी मनमानी से भी ऊपर कुछ है। वह चाहे सुनो सबकी लेकिन करो मन की, यह नहीं चलेगा इस मुद्दे पर भाजपा सरकार को फैसला करना ही पड़ेगा और अगर समय रहते फैसला नहीं लिया तो इसके परिणाम भी भुगतने को तैयार रहना होगा। कुछ करने के लिए भाजपा सरकार के पास समय भी अधिक नहीं है। तीर्थ पुरोहित कल इन नेताओं के विरोध से अपने मंसूबे जाहिर कर चुके हैं वह प्रधानमंत्री के दौरे का विरोध करने का ऐलान कर चुके हैं वही कल प्रदेश भर के तीर्थ पुरोहित केदारधाम कूच करने का भी ऐलान कर चुके हैं। देखना यह है कि अब धामी सरकार इस समस्या का क्या समाधान निकालती है। भाजपा नेता अब दिल्ली हाईकमान से भी यह बात कर रहे हैं। चर्चा है कि धामी सरकार 5 नवंबर से पहले ही इस पर बड़ा फैसला ले सकती है जिससे मोदी का कार्यक्रम निर्विघ्न रुप से संपन्न हो सके। लेकिन तीर्थ पुरोहितोेंं की भी जिद है कि उन्हें देवस्थानम बोर्ड को खत्म करने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। सरकार के आगे कुंआ और पीछे खाई जैसी स्थिति है। धामी के कदम आगे बढ़ते हैं या पीछे हटते हैं दो दिन में पता चल जाएगा।

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