धामों के नाम पर धर्म का धंधा

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धामों और मंदिरों के नाम पर देश में सदियों से जो धंधा किया जाता है उसे रोक पाना कोई आसान काम नहीं हैै। बीते कल राज्य कैबिनेट की बैठक में उत्तराखंड की सरकार द्वारा धामों, मंदिरों और ट्रस्टों के नाम का इस्तेमाल रोकने के लिए कड़े कानून लाने का फैसला लिया गया है। सामान्य तौर पर सरकार की इस पहल को एक अच्छा कदम माना जा सकता है। लेकिन सरकार के इस प्रयास से सब कुछ ठीक हो जाएगा और आने वाले समय में धामों और मंदिरों के नाम का दुरुपयोग नहीं होगा ऐसा संभव नहीं है। दरअसल इस देश के नेताओं द्वारा आस्था के प्रतीक धामों मंदिरों तथा अन्य तमाम धार्मिक संरचनाओं को अपने राजनीतिक मुद्दे के रूप में इस्तेमाल किया, इस समस्या की असल जड़ रहा है। धर्म और धार्मिक संरचनाओं के साथ जातीयों, समुदायों की आस्था का जुड़ा होने के कारण इन मुद्दों पर बड़ी आसानी से राजनीतिक दल और नेताओं द्वारा सामाजिक विभाजन की लकीरें खींच ली जाती है जो उनके वोट बैंक के रूप में राजनीतिक लाभ का आधार तय कर देती हैं। इसके प्रमाण के लिए हमें राम मंदिर आंदोलन या अयोध्या काशी हमारी है अब मथुरा की बारी है जैसे नारों तक जाने की जरूरत नहीं है। अभी बीते 10 जुलाई को जब मुख्यमंत्री धामी ने दिल्ली में केदारनाथ मंदिर का शिलान्यास किया था, जिसे लेकर देहरादून से लेकर दिल्ली तक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए उसकी पृष्ठभूमि में क्या था? इसे उनके संबोधन से ही समझा जा सकता है। क्या देश के नेताओं और राजनीतिक दलों ने ही धर्म की रक्षा और उनके प्रचार प्रसार का जिम्मा ले रखा है। भले ही कल कैबिनेट की बैठक में उन्होंने यह फैसला किया हो कि धामों व मंदिर और ट्रस्टों के नाम का दुरुपयोग रोकने को कानून लाया जाएगा लेकिन चार दिन पहले वहीं उनके द्वारा विपक्ष कांग्रेस पर राजनीति करने और उन्हें अपने मंसूबों में सफल न होने देने की चेतावनी भी दी जा रही थी। क्या दिल्ली में जब वह केदारनाथ मंदिर के लिए भूमि पूजन कर रहे थे उस समय उन्हें पता नहीं था कि यह मंदिर किस नाम से बनाया जाएगा या उन्हें उसे ट्रस्ट का नाम नहीं पता था जिसने इस मंदिर निर्माण की योजना बनाई। दिल्ली का यह ट्रस्ट श्री केदारनाथ धाम मंदिर ट्रस्ट के नाम से संचालित नहीं हो रहा है। अब जब विवाद ने तूल पकड़ लिया और यह साफ दिखाई देने लगा कि इस फैसले को अगर नहीं बदला तो इससे बड़ा राजनीतिक नुकसान हो सकता है तो ट्रस्ट ने भी मंदिर का नाम बदलने पर सहमति जाता दी और सरकार ने भी सख्त फैसला कर लिया। शंकराचार्य अविमुत्तQेश्वरानंद ने इस विवाद पर कड़े शब्दों में कहा था कि केदार धाम में सोना गायब हो गया किसी ने जांच तक नहीं की अब दिल्ली में केदारनाथ मंदिर के नाम पर घपले घोटाले का जरिया बना रहे हो। धामों के नाम पर यह सब नहीं किया जाना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक आम आदमी यह नहीं समझ सकता कि दिल्ली के श्री केदारनाथ धाम मंदिर ट्रस्ट का केदार धाम से कुछ लेना—देना है या नहीं। अब ट्रस्ट के संस्थापक खुद यह बता रहे हैं तो लोगों को पता चल रहा है। इस ट्रस्ट को बनाने का उनका क्या उद्देश्य था यह भी वह खुद ही जान सकते हैं। अब देखना यह है कि सरकार द्वारा जो फैसला कैबिनेट में लिया गया है उससे धामों मंदिरों और ट्रस्टों के नाम के दुरुपयोग पर कितनी रोक लगा सकेगी और धामों व मंदिरों के नाम पर धर्म का यह धंधा कितना बंद हो सकेगा समय ही बताएगा।

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