यह राजनीति का कौन रंग रे

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भले ही देश के लोग यह देखकर हैरान और परेशान हो कि इस देश की राजनीति किस दिशा में जा रही है लेकिन अगर एक लाइन में इसे समझा जाए तो यह मुद्दा विहीन राजनीति का दौर है जो प्रतीकात्मक शब्दों और प्रचार के जरिए सत्ता के लिए की जाने वाली राजनीति है। भारत और इंडिया तथा सनातन जैसे शब्दों से छिड़ा महाभारत इसका एक उदाहरण है। आत्मनिर्भर भारत की बात और अच्छे दिन लाने की बात भले ही शुगुफेबाजी हो लेकिन राजनीति के कितने मारक हथियार हैं यह किसी से छुपा नहीं है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो देश के लोगों को बार—बार यह समझाते दिखते हैं कि मुफ्त की रेवड़िया बांटने वालों से सावधान रहें। वह खुद और उनकी सरकार किस—किस रूप में देश की जनता को मुफ्त की रेवड़ियंा बांट रहे हैं इसका हिसाब किताब लगाया जाना मुश्किल है। कोरोना काल में देश के लोगों को मुफ्त राशन देकर जो आपातकालीन इमदाद दी गई थी वह अभी भी जारी है तथा आने वाले चुनाव तक जारी रहेगी इसकी पुख्ता व्यवस्था केंद्र सरकार कर चुकी है मुफ्त खोरी की आदी बनने वाली जनता को भी यह समझने की जरूरत नहीं है कि जब मुफ्त की खैरात मिलना बंद हो जाएगी तब वह क्या खाएगी? 2016 में केंद्र सरकार द्वारा देश के गरीब परिवारों को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन देकर धुुएं के कारण खाना बनाने में होने वाली परेशानियों से मुक्ति दिलाकर खूब वाह वाही लूटी गई थी इस योजना के तहत लगभग 9.5 करोड़ परिवारों को मुफ्त रसोई गैस कनेक्शन दिए गए थे जिनके बारे में बाद में पता चला कि यह गरीब परिवार फिर भी खाना चूल्हे पर ही बना रहे हैं क्योंकि हजार—ग्यारह सौ का सिलेंडर खरीद पाना उनके बस की बात नहीं है सरकार हालांकि उन्हें 200 रूपये की सब्सिडी भी दे रही थी लेकिन फिर भी सिलेंडर खरीदना उनकी सामर्थ्य से बाहर था। सरकार ने अभी रसोई गैस सिलेंडर के दाम 200 रूपये कम कर दिए तो उज्जवला कनेक्शन लेने वालों को 400 रूपये सस्ता सिलेंडर हो गया लेकिन अभी भी वह 700 रूपये का सिलेंडर नहीं खरीद पा रहे हैं। इस बीच अब केंद्र सरकार की कैबिनेट में फैसला लिया गया है कि वह 75 लाख और उज्ज्वला कनेक्शन फ्री देने जा रही है जिससे देश में उज्जवला लाभार्थियों की संख्या 10 करोड़ 35 लाख के करीब हो जाएगी सवाल यह है कि क्या यह सब काम वह चाहे मुफ्त का राशन हो या फ्री गैस कनेक्शन मुफ्त की रेवड़ियों की श्रेणी में नहीं आते हैं यह तो उदाहरण भर है। अभी चुनाव आने में बहुत समय बाकी है। अभी न जाने और कितने ऐसे मुद्दे तलाश लिए जाएंगे जो सीधे सिटीजन और गरीब कल्याण की भावना से जुड़े होंगे या फिर यह कहा जाये कि वोट की राजनीति से जुड़े होंगे। अभी बहुत सारी ऐसी घोषणाएं होंगी जो देश के किसी विशेष वर्ग को सीधे कैश बेनिफिट होने की गारंटी होगी। अभी बहुत सारे ऐसे शब्द चर्चाओं के केंद्र में होंगे जिन पर भारत तथा इंडिया अथवा सनातन पर छिड़ी बहस जैसी स्थिति देखने को मिलेगी। दरअसल राष्ट्रभक्त, देश द्रोह, मंदिर—मस्जिद, हिंदू—मुस्लिम हिंदी—उर्दू और एक देश एक कानून तथा एक देश एक चुनाव जैसे तमाम ऐसे मुद्दों पर राजनीति के पुरोधा तलवारे ताने मैदान में खड़े हैं। देश की जनता को कैसे गुमराह करना है कैसे महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी तथा गरीबों के मुद्दे और शिक्षा तथा कानून व्यवस्था जैसी असल समस्या से उनका ध्यान भटकाना है इसकी पूरी व्यवस्था की जा रही है। रही बात देश की राजनीति की दिशा और दशा की तो आम आदमी इसकी असलियत न पहले जान सका था और न अब जान सकता है।

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