आजकल अगर देश में किसी मुद्दे पर सबसे अधिक चर्चा हो रही है तो वह है यूसीसी यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड। अगर सरल भाषा में कहें तो सभी के लिए एक समान कानून। केंद्र सरकार यूसीसी लागू करने की पुरजोर कोशिशों में जुट चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब हर एक मंच से यह कहकर कि किसी एक परिवार में एक व्यक्ति के लिए एक तरह का कानून हो और दूसरे के लिए दूसरी तरह का तो ऐसी स्थिति क्या कोई परिवार ठीक चल सकता है? इस पर आम सहमति बनाने के प्रयास में जुटे हैं। भले ही हमारे संविधान में यूसीसी का उल्लेख निहित है और बीते कुछ सालों में यूसीसी को लेकर पहल की जा चुकी है लेकिन तर्क देने वालों का कहना है कि क्या अब तक हमारा देश जिसे प्रधानमंत्री परिवार की संज्ञा देकर कह रहे हैं, कि सबके लिए अलग—अलग कानूनों से कैसे परिवार ठीक से चल सकता है। क्या अब तक देश वर्तमान व्यवस्थाओं से ठीक नहीं चल रहा था? जो अब यूसीसी की जरूरत आ पड़ी है? कुछ लोगों का कहना है कि हमारे देश और लोकतंत्र की पूरी दुनिया में जो अलग पहचान है वह अनेकता में एकता के कारण ही है। देश में अनेक जातियों धर्माे और समुदायों के लोग रहते हैं और सभी को अपने धर्मों और मान्यताओं तथा रीति—रिवाजों के अनुसार पूजा, विवाह, शादी, तीज—त्योहार मनाने और वेशभूषा की आजादी है सभी का अलग—अलग कल्चर है जो भारत की विविधा पूर्ण संस्कृति को पोषित करता है सरकार अगर सभी के लिए एक तरह का कानून लायेगी तो यहां विविधता की विरासत समाप्त हो जाएगी। वहीं कुछ संप्रदाय और जाति विशेष के लोगों को यह भय सता रहा है कि कहीं यूसीसी से उनके मूल अधिकार उनसे न छीन लिए जाए। कुछ आदिवासी समुदाय के लोग इसे लेकर डरे हुए हैं कि उन्हें अति पिछड़े होने के कारण नौकरियों पर जो रिजर्वेशन और दूसरी सुविधाएं वर्तमान में मिल रही हैं वह समाप्त न हो जाए। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य लोगों से अपील कर रहे हैं कि जिस तरह मुस्लिम तथा अन्य पिछड़े समुदाय के लोगों द्वारा लॉ कमीशन के सामने इसका विरोध 2020 में कर इस कानून को लाने से रोका गया था वह फिर एक बार एकजुट होकर इसका विरोध करें। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे लेकर सियासी, सामाजिक और मजहबी तीनों ही फ्रंट पर मोर्चा खोल दिया है। वे राजनीतिक दलों से खासतौर से उन विपक्षी दलों से संपर्क साध रहे हैं जो इसे 2024 के चुनाव के लिए भाजपा सरकार की गुगली बता रहे हैं तथा उन्होने धर्मगुरुओं और सामाजिक संगठनों से संपर्क शुरू कर दिया है। सियासी दल जो भाजपा को 2024 के चुनाव में फायदा होता देख रहे हैं वह तो इसका विरोध कर ही रहे हैं। कुल मिलाकर यूसीसी का आना अभी कोई आसान काम नहीं दिख रहा है जिसका कारण साफ है। अभी तक इसका कोई मसौदा तक सरकार द्वारा देश की जनता या फिर राजनीतिक दलों के सामने नहीं रखा गया है उससे पहले ही जिस तरह के विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं उनसे यह साफ है कि रास्ता आसान नहीं है इस प्रस्ताव को संसद में पारित कराने की चुनौतियों से लेकर सामाजिक विरोध और चुनावी हानि लाभ की गणित अभी बहुत कुछ इसके आगे पीछे है। उत्तराखंड सरकार इसमें अग्रणीय भूमिका निभा जरूर रही है लेकिन धामी सरकार को भी पता है कि यह अति संवेदनशील मामला है अभी—अभी सीएम धामी ने कहा कि यूसीसी लाने में कोई जल्दबाजी नहीं की जाएगी। यूसीसी का भविष्य क्या होगा इसके लिए अभी थोड़ा इंतजार करना ही पड़ेगा।