राम भरोसे हिंदुस्तान

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उत्तराखंड, हिमाचल, पंजाब और दिल्ली सहित अन्य तमाम राज्यों में मानसूनी आपदा के कारण त्राहिमाम त्राहिमाम की स्थिति बनी हुई है यह कैसी विचित्र स्थिति है कि इस आपदा के कारण आम आदमी को जानमाल का भारी नुकसान हो रहा है और वह तमाम तरह की परेशानियां उठा रहा है। वहीं शासन—प्रशासन में बैठे लोग तमाशबीन बनकर अपनी जिम्मेवारी से यह कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं कि इसमें वह क्या कर सकते हैं? यह बरसात के कारण हो रहा है। सवाल यह है कि क्या यह बरसात कोई प्राकृतिक आपदा है? जिसके बारे में शासन—प्रशासन को पहले से कोई जानकारी नहीं थी। मानसूनी सीजन में क्या हर साल बारिश नहीं होती है? यह बारिश किसी भी साल थोड़ी या अधिक हो सकती है। एक सवाल यह भी है कि हर साल मानसूनी हालात से निपटने की तैयारियों से निपटने की बातें तो बहुत होती है लेकिन हर साल फिर उसी तरह की समस्याओं से आम लोगों को दो—चार होना पड़ता है और जैसे ही मानसून जाता है इन समस्याओं को भी भुला दिया जाता है। खासकर महानगरों और शहरी क्षेत्रों के लोगों को जलभराव के कारण भारी समस्या से दो—चार होना पड़ता है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों को बाढ़ जैसी स्थितियों से जूझना पड़ता है। बात अगर देहरादून की की जाए तो चाहे वह आईएसबीटी और क्लमेंटटाउन क्षेत्र में जलभराव की हो या फिर उस भूड़पुर गांव की जहां 5—6 फुट पानी पूरे क्षेत्र में भर गया। यह कोई पहली बार नहीं हुआ है जब से आईएसबीटी बना और भूड़गांव बसा है तभी से लोग इस तरह की समस्याओं को झेल रहे हैं। सहारनपुर रोड पर जो जलभराव की स्थिति बनती है वह भी कोई पहली बार नहीं बनी है सवाल यह है कि आम जनता जिससे नगर पालिका और नगर निगम तमाम तरह के टैक्स वसूलते हैं क्या उनकी जिम्मेदारी नहीं है कि वह आम आदमी को होने वाली इन दिक्कतों से निजात दिलाये। अगर शहर की ड्रेनेज व्यवस्था को 50 साल में भी दुरुस्त नहीं किया जा सकता है तो इसके लिए बरसात नहीं खुद शासन—प्रशासन जिम्मेदार है। सवाल यह नहीं है कि यह किसी एक शहर की समस्या है किसी भी राज्य के शहर—शहर का हाल लगभग एक जैसा ही है। उत्तराखंड के चारधाम यात्रा मार्गों की स्थिति क्या है? इससे भले ही सरकार को कोई सरोकार न हो कि यहां जो लोग आए दिन मर रहे हैं उनकी मौतों का जिम्मेदार कौन है? सरकार इस बात को लेकर अपनी पीठ थपथपा रही है की यात्रा पर रिकॉर्ड 36 लाख यात्री अब तक पहुंचे हैं। अभी पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से सड़कों के हालात पर जब सवाल पूछा गया तो उनका कहना था कि अब बारिश हो रही है तो इसमें कोई क्या कर सकता है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि पूरे देश में उम्मीद से अधिक बारिश हुई है दिल्ली में 40 साल का रिकॉर्ड टूट गया है दिल्ली का स्ट्रक्चर इतना अधिक बारिश को सहने की क्षमता नहीं रखता था इसलिए लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सवाल यह है कि क्या यह समस्याएं बीते सालों में नहीं थी तब इसका क्या कारण था। यह शासन—प्रशासन में बैठे लोगों के पल्ले झाड़ कथा के सिवाय और कुछ नहीं है। स्मार्ट सिटी के कामों को जिम्मेवार बताने वालों के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि राजधानी दून में किए जा रहे स्मार्ट सिटी के काम क्यों समय पर पूरे नहीं कराये जा सके। अब इसका खामियाजा लोगों को क्यों भरना पड़ रहा है जिन लोगों के घरों और दुकानों में पानी घुस गया और लाखों का नुकसान हो गया उसके लिए कौन जिम्मेवार है और उसकी भरपाई कौन करेगा? अनेक सवाल है लेकिन इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है ऐसा लगता है कि हिंदुस्तान में सब कुछ राम भरोसे ही चल रहा है और आम आदमी की सुरक्षा या तो खुद उसके हवाले हैं या फिर ऊपर वाले के।

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