उत्तराखंड के लिए यह गौरव की बात है कि जिन वैश्विक राष्ट्रों के संगठन जी—20 की मेजबानी करने का पहली बार भारत को मौका मिला है उसकी दो महत्वपूर्ण बैठकें या सम्मेलन उत्तराखंड में किए जाने हैं, मुनि की रेती और रामनगर में होने वाली इन जी—20 समिट को खालिस्तान समर्थकों द्वारा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और काबीना मंत्री चंदन रामदास को फोन पर दी जाने वाली धमकियां यह बताने के लिए काफी है कि अलगाववादी ताकतें एक बार फिर सिर उठाने की कोशिशें कर रही है। खास बात यह है कि इन ताकतों के बारे में हमारी खुफिया एजेंसियों और सरकार द्वारा बहुत देर से ध्यान दिया गया है। खालिस्तानी समर्थक जिस अमृतपाल को अब पंजाब व कई राज्यों की पुलिस तलाशती फिर रही है वह बीते साल हुए किसान आंदोलन में सक्रिय था। किसानों के दिल्ली कूच के दौरान लाल किले पर होने वाली हिंसा और तांडव में इन्हीं अराजक तत्वों की भूमिका अहम रही थी, जब लाल किले पर निशान साहिब का झंडा फहराया गया था। ऑस्ट्रेलिया इंग्लैंड और कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादियों द्वारा भारतीय दूतावासों पर जो प्रदर्शन किए जा रहे हैं वह इस अलगाववाद के बढ़ते खतरे का सबूत ही नहीं है अपितु राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए भी बड़ी चुनौती है। यह अलग बात है कि विदेश मंत्रालय के सख्त रुख के बाद अब इन देशों की सरकारों ने भी इसका संज्ञान लेना शुरू कर दिया है। इस अलगाववाद की आग से देश को कितना नुकसान पहुंचा है इसे सब अच्छी तरह से जानते हैं। 90 के दशक में पंजाब के हालात क्या हो गए थे और इन्हें संभालने के लिए देश को कितनी कुर्बानियां देनी पड़ी वह सब इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यह हैरान करने वाली बात है कि आज एक बार फिर इन अलगाववादी ताकतों द्वारा विदेशी धरती से फोन कर उत्तराखंड की सरकार को धमकाया जा रहा है कि रामनगर उसका क्षेत्र है वह यहां कोई भी आयोजन करने से दूर रहे। रामनगर में आज से शुरू हो रही जी—20 की इस समिट में 29 देशों के 56 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं जिनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी उत्तराखंड शासन—प्रशासन की है। हालांकि इसके लिए सरकार ने अत्यंत ही कड़े सुरक्षा प्रबंध किए हैं और किसी अनहोनी की संभावना नहीं है लेकिन यह भी सच है कि जिस तरह की खबरें बीते दिनों में आई हैं, किसी भी खतरे को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। अमृतपाल जिसकी तलाश में बीते कई दिनों से कई राज्यों की पुलिस लगी हुई है तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय भी जिस पर नजर बनाए हुए हैं उसका पंजाब पुलिस को चकमा देकर निकल जाना, उसके समर्थकों द्वारा पुलिस थाने पर हमला बोला जाना और उनको शस्त्रों की ट्रेनिंग दिया जाना, अमृतपाल के समर्थकों से भारी मात्रा में अवैध असलहा बरामद होना और अब गिरफ्तार समर्थकों की रिहाई के लिए अल्टीमेटम दिया जाना आदि न जाने कितनी बातें हैं जो इस बड़े खतरे से आगाह करने के लिए काफी हैं। सबसे अहम सवाल यह है कि देश के खिलाफ यह अलगाववाद का सारा खेल पाकिस्तान और आईएसआई से जुड़ा हुआ है तथा विदेशों की धरती पर चलाया जा रहा है और विदेशों से इसके लिए फंडिंग हो रही है। अलगाववाद की यह आग अब दोबारा से शोला न बनने दी जाए इसकी संपूर्ण जिम्मेवारी केंद्र सरकार पर है लेकिन इस चुनौती को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए।