नशा मुक्त प्रदेश बनाने के लिए कड़े प्रयास जरूरी

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उत्तराखण्ड को आने वाले 2025 तक नशा मुक्त बनाने के लिए मुख्यमंत्री धामी द्वारा अब तक कई मंचों से इसकी घोषणा की गयी है। लेकिन क्या राज्य को नशा मुक्त बनाने की दिशा में सही प्रयास किये जा रहे है, यह एक बड़ा सवाल है। बीते रोज जहंा सीएम धामी कुमंाऊ के प्रवेश द्वार हल्द्वानी से प्रदेश की जनता को आने वाले दो वर्षो में प्रदेश को नशा मुक्त करने का अपना दावा करते दिखायी दे रहे थे तो वहीं इसी दौरान राज्य की राजधानी में पुुलिस द्वारा एक दम्पत्ति से 51 लाख रूपये की स्मैक बरामद कर उन्हे सलाखों के पीछे भेजा जा रहा था। राज्य को नशा मुक्त बनाने के लिए सबसे पहले उन पहाड़ों को खंगालना होगा जहंा सदियों से भांंग व अफीम की खेती की जाती है और जिन्हे स्थानीय प्रशासन व स्थानीय नेताओं का संरक्षण प्राप्त रहता है। वर्तमान मुख्यमंत्री जो कुछ कह रहे है और कर रहे है उसमें ऐसा कुछ खास नहीं है जो पहली बार किया या कहा जा रहा हो। पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री भी अपने—अपने समय में ऐसे ही तमाम दावे करते रहे है। राज्य गठन के बाद नशे का कारोबार राज्य में चार गुना अधिक हो चुका है। स्कूल, कॉलेज और छात्रावासों तक को इस नशे ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है। मुख्यमंत्री धामी का कहना है कि नशा समाज के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बन चुका है। सवाल यह है कि इस अभिशाप को समाप्त करने के लिए अब तक की सरकारों द्वारा क्या किया गया है? अगर राजधानी देहरादून की बात करें तो जिले में 40 पंजीकृत नशा मुक्ति केंद्र हैं जबकि इससे भी ज्यादा नीम हकीमों की दुकानें हैं लेकिन यह नशा मुक्ति केंद्र भी नशा मुक्ति के लिए नहीं चल रहे हैं बल्कि नशा मुक्ति के नाम पर सिर्फ कारोबार कर रहे हैं। इन नशा मुक्ति केंद्रों में नशे के कारोबार से लेकर यौन शोषण व मारपीट और उत्पीड़न के अलावा कुछ नहीं हो रहा है। जिससे तंग आकर लोग आत्महत्या तक कर रहे हैं तथा यहां से जान बचाकर भागने पर आमादा हैं। सही मायनों में यह नशा मुक्ति केंद्र नहीं यातना केंद्र हैं। जिन्हें देखने वाला कोई नहीं है और इन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। नशा तस्करी का धंधा करने वालों को अगर पुलिस पकड़ भी लेती है तो वह चार दिन में फिर बाहर आ जाते हैं और धधें पर लग जाते हैं। सरकार को चाहिए कि वह इन सभी नशा मुक्ति केंद्रों को बंद कर सरकारी अस्पतालों में नशा मुक्ति वार्ड बनाएं तथा नशे के आदी लोगों का डॉक्टरों की देखरेख में इलाज हो सके वहीं नशा तस्करी पर सख्ती से रोक लगाई जाए और पहाड़ोंं पर होने वाली भांग व अफीम की खेती को नहीं होने दिया जाये तभी राज्य को नशा मुक्त बनाये जाने में कुछ सफलता हासिल हो सकती है। सिर्फ दावे करने से प्रदेश को नशा मुक्त नहीं बनाया जा सकता है।

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