धामी की दमदार पारी

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भले ही उत्तराखंड में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा रहा हो लेकिन सूबे की सत्ता पर काबिज रही भाजपा और कांग्रेस के नेता इस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सिर्फ राजनीति ही करते रहे हैं। इन नेताओं के बीच भले ही चुनावी दौर में कितने भी आरोप—प्रत्यारोप एक दूसरे पर लगाए जाते रहे हो लेकिन इस पर लगाम लगाने का प्रयास किसी के भी द्वारा नहीं किया गया। अपवाद के तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री जनरल बीसी खंडूरी ने जरूर अन्ना हजारे के आंदोलन से प्रेरित होकर राज्य में लोकायुक्त गठन की पहल की गई थी लेकिन भाजपा और कांग्रेस के उन नेताओं ने जिनका उद्देश्य राज्य में लूट खसोट करना रहा है या जिनके नाम कई—कई घोटालों से जुड़े रहे हैं, ने उनके प्रयासों को परवान नहीं चढ़ने दिया। भ्रष्टाचार पर नूरा कुश्ती लड़ने वाले यह नेता अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के एक्शन की सराहना तो कर रहे हैं लेकिन उन्हें इस बात का भी मलाल हो रहा है कि पुष्कर सिंह धामी भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने सख्त रवैये से लोकप्रियता की ऊंचाई तक पहुंच रहे हैं इसे लेकर कांग्रेस ही नहीं भाजपा के नेता भी बेचैन दिख रहे हैं। कांग्रेस के नेता इसलिए परेशान हैं क्योंकि धामी के एक्शन से भाजपा की छवि को मजबूती और बल मिल रहा है और कांग्रेस भर्ती घोटालों को लेकर जो आंदोलन कर रही है वह जनता को इतना प्रभावित नहीं कर पा रहा है जितना कर सकता था। वहीं भाजपा के नेता इसलिए परेशान हैं की धामी पार्टी में नंबर वन की सीट पर अपनी पकड़ मजबूत बनाते जा रहे हैं और उन्होंने बाकी सब को अपने पीछे धकेल दिया है। लेकिन इन नेताओं का उनकी इस सोच से कुछ भला होने वाला नहीं है क्योंकि वह अब धामी की खींची गई बड़ी लाइन को मिटाकर छोटा नहीं कर सकते हैं और धामी से बड़ी लाइन खींचने की कूवत उनके अंदर है नहीं। मौका तो उन्हें भी मिला था कि वह भी अपने कार्यकाल में वैसा कुछ करके दिखाते जैसा धामी कर रहे हैं लेकिन अपने से आगे दौड़ने वालों को लंगडी मारकर गिराने और आगे निकलने की सोच रखने वाले इन नेताओं ने कभी कुछ अच्छा करने के बारे में सोचा ही नहीं। जिन भर्ती घोटालों को लेकर इन दिनों सूबे की राजनीति में हंगामा मचा हुआ है उन पर धामी का रुख सख्त ही नहीं स्पष्ट भी है। विधानसभा में बैक डोर भर्तियों को रद्द किया जा सकता है तथा भविष्य में ऐसा न हो सके इसका भी पुख्ता बंदोबस्त हो सकता है वही धामी के दांव से ऐसा लगता है कि वह यूके एसएसएससी की भर्तियों में हुई धांधली की जांच सीबीआई से कराने की पहल भी कर सकते हैं। उनके इस रुख से युवा बहुत खुश है। उन्हें लग रहा है कि उनके साथ जो नाइंसाफी हुई है अब धामी की यह पहल उन्हें इंसाफ दिला सकती है। मुख्यमंत्री धामी के राजनीतिक भविष्य और भाजपा के लिए यह काफी है। लेकिन इसके लिए यह जरूरी है कि पुष्कर सिंह धामी को रुकना नहीं चाहिए। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जब उनके साथ खड़ा है तो उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। धामी के पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए सब कुछ है। उनका तो सब कुछ उसी दिन खो गया जब वह खटीमा से चुनाव हारे थे। यह तो किस्मत है और पार्टी का आशीर्वाद जो उन्हें फिर से मौका मिल गया इसलिए उन्हें अब रुकना नहीं चाहिए और भ्रष्टाचार पर वार के क्रम को तब तक जारी रखना चाहिए जब तक वह अपने अंजाम तक न पहुंच जाए।

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