सिकुड़ती नालियां, बहता पानी

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देहरादून की आबादी में जिस तरह लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। उसे देखते हुए पीने का पानी, विघुत आपूर्ति, गंदे पानी की निकासी और जाम लगने की स्थिति दिन प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है। यहंा हम गंदे पानी की निकासी पर ही चर्चा करना चाहेगें। क्योंकि पानी की निकासी न होने से पानी में तरह—तरह की बीमारियों के कीटाणु पैदा होने से कभी भी महामारी का रूप कोई भी रोग ले सकता है। बरसात के दिनों में शहर की नालियों से पानी नालियों की बजाय सड़कों पर बहने लगता है। नगर निगम बनने के बाद नालियों के विस्तारीकरण और नव निर्माण का काम शुरू तो हुआ लेकिन वह कितना कामयाब रहा आज भी यह सब बरसात के मौसम में देखा जा सकता है। क्योंकि नालियों के ऊपर के हिस्से को जब तक खुला नहीं छोड़ा जायेगा पानी जाम होने की समस्या से छुटकारा नही मिल सकता है। नाली जाम की इस समस्या से दून के नागरिक भी कुछ पीछे नहीं है। क्यों कि घर और दुकान का जो भी कूड़ा कचरा होता है वह नालियों में डालकर अपना कर्तव्य पूरा करते है। जिससे पानी का आगे बढ़ना नामुमकिन हो जाता है। अगर नालिया ऊपर से खुली हो तो ऐसे कुड़े कबाड़ को नियमित रूप से निकाला जा सकता है। लेकिन नालियों में जगह जगह स्लैब पड़ जाने से निकासी के लिए सफाई व्यवस्था बेकार हो जाती है। लोग अपने शहर या गली मौहल्ले की सुन्दरता बढ़ाने के लिए सफाई का विशेष ख्याल रखते है। लेकिन यहंा हालात यह है कि शहर में घुसते ही राजारोड मेन बजार व अंसारी मार्ग पर आपको कूड़े के ढेर लगे दिखायी देते है। समझ में नही आता कि नगर की गंदगी छिपाने के प्रति स्वास्थ्य विभाग क्यों आंखे मूंदे बैठा है। शहर को बदरौनक करने वाले इन कूड़ा घरों को ठीक किया जाना जरूरी है। हमारा सुझाव है कि नगर निगम प्रशासन न केवल नालियों की सफाई करवाये बल्कि गंदगी के कथित कूड़ा घरों को भी इस प्रकार से बनवाने का प्रयास करे जिसे लोगों को नाक भौं सिकाड़ने की जरूरत न पड़े।

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