सूबे पर मानसून की मार

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उत्तराखंड राज्य इन दिनों मानसूनी आपदाओं की मार झेल रहा है। राज्य में अतिवृष्टि के कारण सबसे बड़ा नुकसान सड़कों को हो रहा है। दर्जनों छोटे—बड़े पुल टूट चुके हैं तथा कई नेशनल हाईवे सहित दो सौ से अधिक सड़कें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। जिसके कारण राज्य का पर्यटन और आवागमन प्रभावित हुआ है। राज्य में चल रही चारधाम यात्रा पर मानसूनी कहर का असर साफ देखा जा सकता है। धामों में श्रद्धालुओं की संख्या एक चौथाई भी शेष नहीं बची है। पहाड़ से आने वाले मलबे के कारण यातायात तो बाधित हो ही रहा है साथ ही पहाड़ में यात्रा करना जान जोखिम में डालने जैसा हो चुका है। राज्य में चल रहे ऑल वेदर रोड के निर्माण कार्य के लिए पहाड़ों के और वृक्षों के अंधाधुंध कटान के कारण भूस्खलन की घटनाएं कई गुना अधिक बढ़ गई हैं जो यात्रियों के लिए बड़ी मुसीबत का सबब बनी हुई है। खास बात यह है कि भारी बारिश के दौरान सड़कों की मरम्मत का काम भी संभव नहीं है इसलिए सिर्फ मलबा हटाकर टूटी—फूटी सड़कों को सिर्फ आने जाने लायक ही बना पाना संभव है। जहां निर्माण कार्य किए जा रहे हैं वह अत्यंत जोखिम पूर्ण स्थितियों में हो रहे हैं। बीते कल नरकोटा में निर्माणाधीन पुल के ढहने से 10 मजदूरों का दब जाना और दो की मौत हो जाना तो एक बानगी भर है ऐसी दुर्घटनाएं पहाड़ पर आम बात है। खास बात यह है कि हर साल बारिश से होने वाले इस नुकसान को 8 माह का काम भी भरपाई नहीं कर पाता है। जो सड़कें और पुल इस साल टूट जाएंगे वह अगले मानसूनी सीजन तक पुनः बन जाएंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। पहाड़ के लिए हर एक मानसून का सीजन नई मुसीबतें लेकर आता है। यह गनीमत है कि इस साल अब तक किसी बड़ी आपदा से दो—चार नहीं होना पड़ा है अन्यथा हर मानसूनी सीजन में बादल फटने से गांव के गांव तबाह हो जाते हैं। और अगर आपदा 2013 जैसी हो तो उसके जख्म तो दशकों में भी नहीं भर पाते हैं। राज्य में बारिश के कारण सड़कों की क्या बदहाल स्थिति है उसके लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है राजधानी दून की सड़कों का हाल जानकर ही इसका अनुमान लगाया जा सकता है। इन दिनों राजधानी की सड़कों के हाल पर भले ही स्मार्ट सिटी के कामों की दलील दी जा रही हो लेकिन जब स्मार्ट सिटी का काम नहीं हो रहे थे तब भी सड़कों की हालत कुछ बेहतर नहीं थी। नदी—नालों के किनारे बसी बस्तियों में जलभराव तो आम बात है शहरों की तमाम बस्तियों के घर—मकानों में पानी भर जाता है। जहां तक सरकार के आपदा प्रबंधन की बात है तो उसका काम भी लोगों की जान बचाने से ज्यादा मलबे में शवों को ढूंढने तक ही सीमित है। सड़कों के बाधित होने से पहाड़ों में आवश्यक वस्तुओं और सेवाएं पहुंचना भी मुश्किल हो जाता है।

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