टकराव चिंताजनक

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देश के तमाम राज्यों से आने वाली सांप्रदायिक टकराव की खबरों को लेकर चिंतित होना इसलिए स्वाभाविक हो गया है क्योंकि भविष्य में यह देश की एकता और अखंडता के लिए एक बड़ा खतरा हो सकता है। बीते कुछ सालों में देश में जिस तरह का वातावरण तैयार हुआ है वह अब एक अघोषित गृह युद्ध का रूप लेता जा रहा है। इसलिए भी यह चिंतनीय है कि इससे देश की सर्व धर्म समभाव की संस्कृति समाप्त होती जा रही है। इन हालातों को किन लोगों ने पैदा किया है? इसे लेकर भले ही राजनीतिक दल एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे लेकिन वह सभी बराबर के जिम्मेदार हैं। हमारे नेताओं ने ही वोट की राजनीति के लिए हिंदुस्तान में सैकड़ों पाकिस्तान बनाने का काम किया है। भले ही हम देश को दो हिस्सों में बांटने के लिए नेहरू और जिन्ना को जिम्मेवार ठहराते रहे लेकिन जिस पाकिस्तान को हम आज आतंकिस्थान कहते हैं वैसे ही अनेक आतंकिस्थान हमारे वर्तमान नेताओं ने तैयार कर दिए हैं जो अब हिंदुस्तान में रहकर और हिंदुस्तान का खाकर देश में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं। खास बात यह है कि देश के शिक्षण संस्थान इस सांप्रदायिकता के अड्डे बन चुके हैं। बात चाहे दिल्ली के जेएनयू की हो या फिर कर्नाटक के उच्च शिक्षण संस्थान की जहां से अभी हिजॉब को लेकर विवाद शुरू हुआ था या फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की जहां हिंदू देवी देवताओं पर आपत्तिजनक बातें छात्रों को पढ़ाई जा रही थी। आखिर कौन हैं वह लोग जो ऐसी गतिविधियों का संचालन कर रहे हैं? उनकी मंशा क्या है? अभी हिजाब पर उठे विवाद पर एक मुस्लिम नेता ओवैसी ने कहा था कि एक दिन एक हिजाब वाली महिला पीएम की कुर्सी पर बैठी होगी? इसके पीछे की उनकी मंशा क्या थी? संविधान तो किसी हिजाब वाली महिला को पीएम की कुर्सी पर बैठने से रोक नहीं सकता है जब हिजाब वाली मुफ्ती जम्मू कश्मीर के सीएम की कुर्सी पर बैठ सकती है तो फिर पीएम की कुर्सी पर भी हिजाब वाली महिला बैठ सकती है। लेकिन वह संविधान के जरिए ही बैठ सकती है आतंकिस्थान के जरिए नहीं। यह बात ओवैसी जैसे नेताओं को समझने की जरूरत है। ऐसे लोगों को यह भी समझ लेना जरूरी है कि जब पाकिस्तान, इराक, ईरान और अफगानिस्तान जैसे मुल्क मुस्लिम राष्ट्र कहे जा सकते हैं तो फिर हिंदुस्तान जैसे राष्ट्र को हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं कहा जा सकता है? हिंदू , हिंदी और हिंदू राष्ट्र से ही तो हिंदुस्तान बना है। इसकी मुखाफलत करने वालों का हिंदुस्तान में रहने का कोई हक भी नहीं है। ठीक है कि संविधान सभी जाति, धर्म और संप्रदाय के लोगों को देश में रहने और अपनी बात कहने का हक देता है लेकिन राष्ट्रद्रोह का अधिकार संविधान किसी को भी नहीं देता है। देश में रहने वाले हर संप्रदाय, धर्म और जाति के लोगों को चाहिए कि वह जो करें या कहें संविधान के दायरे में रहकर ही करें क्योंकि बाकी कोई भी जरिया इस देश के लोकतंत्र को स्वीकार्य नहीं हो सकता। बेहतर यही है कि नेता सांप्रदायिकता को अपनी राजनीति का जरिया न बनाएं और देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखें।

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