मलिन बस्तियों का मसला

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सचिव आवास एवं शहरी विकास द्वारा उत्तराखंड के सभी 13 जिलों के जिलाधिकारियों को मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक देने की प्रक्रिया शुरू करने के जो निर्देश दिए गए हैं वह अंतिम मुकाम तक पहुंचेंगे या नहीं इस बारे में अभी कुछ भी कहा जाना संभव नहीं है। लेकिन किसी नई सरकार के गठन के तुरंत बाद मलिन बस्तियों के बारे में इस तरह की कोई पहल किया जाना एक उम्मीद जगाने वाली जरूर है। क्योंकि मलिन बस्तियों की समस्याओं पर आमतौर पर सभी राजनीतिक दल और नेताओं द्वारा सिर्फ चुनाव के दौरान ही बात की जाती है। खास बात यह है कि मलिन बस्तियों की समस्या सिर्फ उत्तराखंड राज्य की नहीं है देश की राजधानी दिल्ली से लेकर देश का कोई भी राज्य और शहर इससे अछूता नहीं है। इस समस्या का कोई स्थाई समाधान इसलिए भी संभव नहीं हो सकता है क्योंकि नगर और महानगर क्षेत्रों में आबादी लगातार बढ़ती रहती है और नेताओं की शह पर हर शहर में नई—नई मलिन बस्तियों का बसना जारी रहता है। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे महानगरों में यह समस्या इतनी विकराल हो जाती है कि इस करोड़ों की आबादी को न हटा पाना संभव होता है और न निभा पाना। इनके पुनर्वास के प्रयास भी कुछ ही सालों में धराशाई हो जाते हैं। बात अगर उत्तराखंड की ही करें तो 2016 की गणना के अनुसार यहां विभिन्न शहरों में 582 मलिन बस्तियां चिन्हित की गई थी। जिसमें आठ लाख के आसपास आबादी बताई गई थी लेकिन यह आंकड़े सही नहीं है आज अगर इसका सही से मूल्यांकन किया जाए तो मलिन बस्तियों की संख्या हजार के पार और आबादी 15 लाख के पार हो चुकी होगी। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद मलिन बस्तियों की संख्या में गुणात्मक तेजी से वृद्धि हुई है। हर बार चुनाव आते हैं तो सभी राजनीतिक दल इन मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की बात करते हैं तथा इन बस्तियों में रहने वाले लोगों को मालिकाना हक देने का वायदा किया जाता है लेकिन अब तक तो किसी भी सरकार द्वारा ऐसा किया नहीं जा सका है। बीते सालों में हाईकोर्ट द्वारा अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए गए थे तो इन मलिन बस्तियों पर जब बुलडोजर चलने की नौबत आई तो सरकार ने अध्यादेश का सहारा लेकर इनकी सुरक्षा का रास्ता तलाश कर लिया गया था। भाजपा सरकार भी अदालत को इनके पुनर्वास और नियमितीकरण के लिए आश्वासन देकर इनका बचाव करती रही है। लेकिन सवाल यह है कि आखिर यह कब तक चलता रहेगा सरकार को इन मलिन बस्तियों और इनमें रहने वालों की समस्याओं का कोई तो हल निकालना ही पड़ेगा। सरकार ने भले ही अब इस समस्या के समाधान की पहल शुरू कर दी हो लेकिन यह मामला इतना आसान भी नहीं है। इन बस्तियों को उजाड़ा जाना संभव नहीं है क्योंकि यह लाखों लोगों के सिर छुपाने का जरिया और ठिकाना है। सरकार इन बस्तियों का सिर्फ नियमितीकरण ही कर सकती है जिससे इनमें रहने वालों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सके और उन्हें टैक्स के दायरे में लाया जा सके। वही सरकार को नई मलिन बस्तियों को बसने पर सख्ती से रोक लगाने के उपाय करने होंगे जिससे यह समस्या फिर विकराल रूप धारण न कर सके।

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