सबको चाहिए सीएम की कुर्सी

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भाजपा ने पांच में से चार राज्यों में चुनाव तो जीत लिया लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए जिस तरह की मारामारी उत्तराखंड में देखने को मिल रही है वैसी शायद पहले आपने किसी भी राज्य में नहीं देखी होगी। मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर जितने दावेदारों के नाम सामने आ चुके हैं वह तो सभी को पता है लेकिन जिनके नाम चर्चा में कहीं नहीं है वह भी कम नहीं है। भाजपा ने इस चुनाव में 70 में से भले ही 47 सीटें जीती हो लेकिन चुनाव हारने वाले पुष्कर धामी से लेकर तमाम वर्तमान सांसदों सहित 70 लोगों की चाहत है कि उन्हें बस किसी तरह से मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल जाए। अभी बीते दिनों केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक बयान दिया था कि राजनीति चीज ही ऐसी है जहां सब परेशान हैं। जिसे टिकट मिल गया वह इसलिए परेशान है कि विधायक या सांसद कैसे बने और जो मंत्री बन गया वह इसलिए परेशान है कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री कैसे बने। यह ठीक है कि सभी की आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षाए होती है और होनी भी चाहिए लेकिन सभी को अपनी क्षमताओं और योग्यता का भी बोध होना चाहिए। अगर नेता बनने के लिए कोई श्ौक्षिक योग्यता जरूरी नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है कि जिसे चाहो कुर्सी पर बैठा दो। एक अयोग्य शासक से आप क्या उम्मीद कर सकते हैं और अगर एक अयोग्य शासक कुर्सी पर बैठकर अगर चमड़े का सिक्का चलाता है तो आप उसे कैसे रोक लेंगे? लेकिन क्या यह स्थिति किसी भी देश या प्रदेश के लिए हितकर कही जा सकती है। भाजपा द्वारा चार में से तीन राज्यों के मुख्यमंत्री तय कर दिए गए हैं अकेला उत्तराखंड राज्य ऐसा बचा है जहां अभी तक मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला नहीं हो सका है भले ही संवैधानिक व्यवस्था के तहत चुने हुए विधायकों द्वारा अपने दल का नेता चुनने का अधिकार है लेकिन क्या ऐसी स्थिति में उत्तराखंड भाजपा के विधायक अपना नेता चुन सकते हैं जब सभी 47 के 47 विधायक खुद को नेता बनाए जाने की महत्वकांक्षा रखतेे हो अगर विधायकों से कह दिया जाए कि आप खुद ही नेता के नाम पर फैसला कर लो तो इन विधायकों में सिर फुटव्वल की स्थिति पैदा हो जाएगी। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में यह पहली बार देखा जा रहा है। राज्य गठन के बाद बनी पहली अनिर्वाचित सरकार के गठन से ऐसी स्थिति बनी हुई है। राज्य में पहले मुख्यमंत्री के चयन के समय हमने भाजपा में ऐसी घमासान की स्थिति देखी थी राज्य में सरकार किसी की भी रही हो मुख्यमंत्रियों के बदले जाने की एक परंपरा सी बन गई है। वर्तमान स्थिति में भी अब भाजपा हाईकमान पर फैसला छोड़ दिया गया है वहीं भाजपा हाईकमान चाहे जिसे भी सीएम की कुर्सी पर बैठा दें लेकिन वह सीएम पूरे 5 साल कुर्सी पर टिका रहेगा इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। अब देखना यह है कि भाजपा हाईकमान किसे सीएम की कुर्सी पर बैठाता है और वह कितने दिन तक कुर्सी पर काबिज रह पाता है।

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