जिद पर अड़े किसान

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के रणनीतिकारों ने सोचा होगा कि अगर वह तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर देंगे तो किसान अपना आंदोलन समाप्त कर अपने गांव और घरों को लौट जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब किसान और अधिक आक्रामक रुख अख्तियार करते दिख रहे हैं किसान नेताओं ने कल लखनऊ में हुई पंचायत के बाद साफ कर दिया है कि वह प्रधानमंत्री मोदी की महज घोषणा करने भर से अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे उनका कहना है कि जिस संसद में यह काले कानून बनाए गए थे उस संसद में जब तक इन्हें खत्म नहीं किया जाता है आंदोलन खत्म नहीं होगा। किसानों का कहना है कि उनके आंदोलन का सिर्फ तीन कानूनों को खत्म करना ही मुद्दा नहीं है एमएसपी गारंटी कानून सहित और भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर उन्हें सरकार से बात करनी है। किसानों ने अपनी मांगों को लेकर पीएम को एक पत्र भी लिखा है। ऐसा लगता है कि इस आंदोलन के दौरान सरकार और भाजपा ने किसानों को जितना झकाया है किसान भी अब सरकार और सत्ता में बैठे लोगों को उसी की भाषा में अपनी बात समझाना चाहते हैं। कल तक किसान इस जंग में बैकफुट पर थे लेकिन अब सरकार बैकफुट पर आ चुकी है। किसानों की आय दोगुना करने की बात कह कर या किसानों को 500 रूपये महीने की सम्मान राशि देकर सरकार उन्हें अब गुमराह नहीं कर सकती है। किसानों को भीख नहीं चाहिए उनको अपना हक और अधिकार चाहिए। कई लोग किसानों की जिद को बेतुका और गलत भी समझ रहे हैं लेकिन यह वही लोग हो सकते हैं जो खेती—किसानी और किसानों की समस्याओं और परेशानियों से वाकिफ नहीं है। अन्नदाता होने के बावजूद भी इस देश का किसान आजादी के 75 साल बाद भी अगर बदहाली में जी रहा है तो इसके लिए कोई और नहीं देश की सरकारें ही जिम्मेदार हैं। किसान को आज तक अगर उसकी अपनी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिल सका है तो यह सरकार की नीतियों का ही नतीजा है। बाजार में भले ही आलू 50 रूपये, प्याज व टमाटर 100 रूपये किलो बिक रहा हो लेकिन किसान को इसका क्या मूल्य मिल पाता है यह सबसे अहम बात है। सरकार इस आंदोलन के दौरान लगातार मंडियों का अस्तित्व खत्म न करने तथा एमएसपी की व्यवस्था को लागू रखने की बात तो करती रही है लेकिन हर साल उपज का समर्थन मूल्य तय करने वाली सरकार को यह भी पता होना चाहिए कि क्या किसानों को फसल के इस समर्थन मूल्य का फायदा हो भी रहा है या नहीं। अब अगर किसानों को इसका फायदा नहीं हो रहा है और वह एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है? सरकार ने उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में चुनावी लाभ के लिए तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला तो ले लिया क्योंकि इस आंदोलन से 75 लोकसभा सीटों पर प्रभाव पड़ता दिख रहा था लेकिन चुनावी लाभ के मद्देनजर लिए गए फैसले का मतलब किसान भी समझ रहे हैं यही कारण है कि वह अपनी पूरी बात मनवाए बगैर अपना आंदोलन वापस नहीं लेने पर अड़े हुए हैं। देखना होगा कि सरकार उनकी बात कितनी मानती है और कितनी नहीं।

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