उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून सहित पूरे प्रदेश में बढ़ता नशे का कारोबार अब चिन्ताजनक स्थिति में पहुंच चुका है। समय रहते यदि सरकार और प्रशासन द्वारा इस कारोबार को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए तो युवा पीढ़ी के नशे की ओर बढ़ रहे कदमों को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जायेगा। स्थिति यह है कि इस समय स्कूलों व कालेजों के आस—पास जमकर नशीले पदार्थों का कारोबार किया जा रहा है और नशे के सौदागारों का मुख्य निशाना छात्र और युवा वर्ग ही हैं। नशे के सौदागरों द्वारा युवा पीढ़ी को नशे की गर्त में डालने के लिए कई तरह के नशीले पदार्थ बेचे जा रहे हैं। इनमें टॉफीनुमा गोलियों से लेकर इंजेक्शन, चरस व स्मैक भी शामिल हैं। इन नशीले पदार्थों की लत में पड़कर युवा वर्ग गलत राह पकड़ रहा हैं। राज्य में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जब नशे की लत को पूरा करने के लिए युवाओं ने कोई गंभीर अपराध को अंजाम दिया है। ऐसा नहीं है कि शासन—प्रशासन इस सबसे अनभिज्ञ है। बीते कुछ वर्षों से प्रदेश में युवा पीढ़ी की नशे की लत छुड़ाने के लिए सरकार की ओर लगातार पुलिस प्रशासन को दिशा निर्देश दिये जा रहे है। वहीं पुलिस भी आये दिन नशा कारोबारियों पर शिंकजा कस रही है लेकिन इस सबके बावजूद नशे का यह काला कारोबार राज्य में थमने का नाम नहीं ले रहा है। बीते रोज राजधानी देहरादून मेंं पुलिस द्वारा एक महिला सहित कई नशा तस्करों को गिरफ्तार कर उनके पास से स्मैक व चरस बरामद की गयी थी, यह बताने के लिए काफी है कि उत्तराखण्ड को नशा कारोबारी अपने लिए उपयुक्त मान रहे है। वहीं राज्य के कई मेडिकल स्टोरों में भी नशीली गोलियां बेची जा रही है। जबकि स्वास्थ्य विभाग इस ओर आंखें मूंदें बैठा हैं। इससे साफ है कि कहीं न कहीं नशे के कारोबार पर रोक लगाने के जिम्मेदार महकमे भी इन नशा कारोबारियों के खिलाफ कतरा रहे है। सरकार को इस दिशा में बेहद गंभीरता से सोचने की जरूरत है और उसे इस दिशा में सख्ती और दृढ़ इच्छाशक्ति प्रदर्शित करनी होगी। सरकार को चाहिए कि वह संबंधित महकमों को इसके लिए निर्देशित करे। अभी तक जारी किए गए दिशा निर्देशों के अनुपालन की समीक्षा की जाए। समय—समय पर स्कूलों व शिक्षण संस्थाओं के आसपास सघन अभियान चलाया जाए। मेडिकल स्टोर्स पर पर भी जांच अभियान चलाए जाने की जरूरत है। तब ही इस नशे के काले कारोबार पर अंकुश लगाया जा सकता है।