सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड पर लगाई रोक

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  • जनता को जानने का अधिकार किसने दिया कितना चंदा
  • मनी लांडिंग और काले धन को सफेद करने की आशंका
  • अब देना पड़ेगा अब तक लिए गए चंदे का हिसाब
  • अब नहीं भुना सकेंगे इस साल लिए गए चुनावी बांड

नई दिल्ली। केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा 2018 में शुरू किए गए इलेक्टोरल बांड की जिस व्यवस्था को लागू किया गया था उसे आज सुप्रीम कोर्ट के मुख्य जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधानिक पीठ ने अवैधानिक घोषित करते हुए उस पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। चुनाव से ठीक दो माह पूर्व आए इस फैसले से केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को भारी झटका लगा है।
उल्लेखनीय है कि दो माह पूर्व इस बाबत दायर की गई तमाम याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा गया था। आज जब सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया तो सत्ता में बैठे लोग हैरान रह गए। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सुप्रीम कोर्ट भला ऐसा कैसे कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज सुनाये गये फैसले में साफ कहा गया है कि देश के मतदाता जिस राजनीतिक दल को वोट देते हैं उन्हें यह जानने का अधिकार है कि उस पार्टी को चुनावी चंदा देने वाले कौन लोग हैं। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिर्फ इस चंदे पर रोक ही नहीं लगाई गई है बल्कि अब तक दिए गए चंदे का हिसाब—किताब भी देने को कहा गया है। जिस पर एसबीआई के माध्यम से राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बांड खरीदने का अधिकार दिया गया था, वह अब इलेक्शन कमिशन को इसकी संपूर्ण जानकारी का ब्यौरा देगा और इलेक्शन कमीशन आम आदमी को सारी जानकारी देगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनवरी माह में लिए गए इलेक्टोरल बांड भुनाने पर रोक लगा दी गई है वहीं फॉरेन फंडिंग पर भी रोक लगाई गई है। कोर्ट ने साफ कहा है की बेनामी तरीके से किये जाने वाले इस बांड की खरीद फरोख्त से काले धन को बढ़ावा मिलने और काले धन को सफेद करने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। तथा यह आम आदमी के जानने के अधिकार का खुला उल्लंघन है। केंद्र की सत्ताधारी भाजपा को सुप्रीम कोर्ट का फैसला सिर्फ इसलिए बड़ा झटका नहीं है कि वह इस बंाड व्यवस्था को लेकर आई थी बल्कि इसलिए भी बड़ा झटका है क्योंकि इस बांड के जरिए उसे ही सबसे प्रचुर मात्रा में कारपोरेट से धन की प्राप्ति हो रही थी। एक अनुमान के अनुसार इस बंाड से मिलने वाले चंदे का 72 फीसदी भाजपा को मिलता है जो 11000 करोड़ से अधिक बताया जाता है जबकि बाकी 28 फीसदी यानि 4000 करोड़ में कांग्रेस सहित अन्य सभी राजनीतिक दल शामिल है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इस चंदे के गोरखधंधे का काला सच देश की जनता के सामने भी आएगा जो भाजपा के लिए बड़ा मुसीबत का सबब बन सकता है।

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