नेताओं और राजनीतिक दलों के बीच छिड़ा ट्विटर वार और सोशल मीडिया में वायरल होने वाले ऑडियो—वीडियो तथा खबरें इस बात का सबूत है कि हमारा डिजिटल इंडिया कितना अद्भुत है और कितनी तेजी से विकास की ओर अग्रसर है। सोशल मीडिया की ताकत क्या है इससे पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा। खासतौर से चुनावी दौर में इसका उपयोग या यूं कहें की इसका दुरुपयोग कैसे और कितना किया जा सकता है? इसकी कोई सीमा नहीं है। अभी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के दौरान आपने इसके अनेक कारनामे देखे और सुने होंगे। आपने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की वह दाड़ी वाली तस्वीर भी देखी होगी जिसे ध्रुवीकरण की राजनीति से जोड़कर उसका जमकर प्रचार किया गया। पूर्व मंत्री और विधायक बंशीधर भगत का वह ऑडियो भी आपने सुना होगा जिसमें उन्हें किसी महिला के साथ अश्लील बातें करते दिखाया गया है। तथा विधायक संजीव गुप्ता का वह वीडियो भी देखा होगा जिसमें वह अपनी ही पार्टी अध्यक्ष को गद्दार बता रहे हैं और अभी कल ही वायरल हुआ वह ट्यूट भी देखा होगा जिसमें मदन कौशिक भाजपा की हार के जिम्मेवारी लेते हुए अपने इस्तीफे की बात कर रहे हैं। यही नहीं सोशल मीडिया पर वायरल खबरों में मतगणना से पूर्व ही चुनाव नतीजों की घोषणा तक करने की चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है। भले ही यह कहा जाता रहा हूं कि राजनीति और प्यार में सब कुछ जायज होता है लेकिन यह एक मिथ्या प्रचार है। राजनीति और प्यार की अपनी मर्यादा और सीमाएं भी होती हैं किसी के भी चरित्र हनन का अधिकार किसी को नहीं हो सकता है। मिथ्या प्रचार और उसके जरिए किसी की भी छवि को अपने निजी राजनीतिक स्वार्थों के लिए खराब करने की यह प्रवृत्ति अत्यंत ही घातक है। बात चाहे बंशीधर की हो या किशोर उपाध्याय की। जिन पर एक प्रत्याशी द्वारा 10 करोड़ में भाजपा का टिकट खरीदने का आरोप लगाया गया। इन तमाम मामलों में पीड़ित पक्ष और राजनीतिक दलों द्वारा जहां इसकी शिकायत निर्वाचन आयोग में दर्ज कराई गई है वहीं पुलिस में कई मामलों में एफ आई आर दर्ज हो चुकी है लेकिन इन मामलों में किसी भी आरोपी को पकड़ा जाएगा या उसको सजा होगी इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भाजपा जिसने 2014 के आम चुनाव में अपनी पार्टी के लिए सोशल मीडिया को अपना सबसे सशक्त प्रचार माध्यम बनाकर सबसे बड़ी जीत हासिल की आज वही डिजीटल इंडिया और सोशल मीडिया राजनीति के लिए सबसे बड़ा सर दर्द भी साबित हो रही है। सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाये गये कानून भी इसको रोकने में पूरी तरह से नाकाम साबित हो रहे हैं। रातों—रात किसी की भी छवि को खराब करने और प्रत्याशियों तथा पार्टियों की जीत को हार और हार को जीत में बदलने का माद्दा रखने वाले सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर लगाम लगाना जरूरी है क्योंकि इसे भ्रामक और मिथ्या प्रचार का जरिया बना लिया गया है अगर इसे तत्काल प्रभाव से नहीं रोका गया तो इसके दूरगामी परिणाम अत्यंत ही गंभीर होंगे।