रामनगर ने हरीश और रंजीत दोनों को हराया

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कांग्रेस को कई सीटों पर हुआ नुकसान

देहरादून। पूर्व सीएम हरीश रावत अगर रामनगर सीट से चुनाव लड़ने की जिद पर न अड़े होते तो शायद उन्हें खुद तो शर्मनाक हार का सामना करना ही न पड़ता इसके साथ ही रंजीत रावत भी चुनाव न हारते।
रामनगर सीट से रंजीत सिंह रावत बीते कई सालों से चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हुए थे लेकिन चुनाव की कमान संभाल रहे हरीश रावत ने अपनी निजी प्रतिद्वंद्विता के कारण रामनगर सीट से खुद को टिकट करा लिया गया और रंजीत रावत को कांग्रेस ने रामनगर के अलावा कहीं और सीट तलाशने को कह दिया गया, जिसके कारण रंजीत रावत हरीश और कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोलने पर विवश हो गए। जब बात नहीं बनती दिखी तो पार्टी ने दोनों से ही रामनगर पर दावेदारी छोड़ने को कह दिया गया। नतीजा यह हुआ कि रंजीत सिंह रावत को मजबूरी में सल्ट सीट पर जाना पड़ा और हरीश रावत को लाल कुआं का रुख करना पड़ा। जिस रामनगर सीट पर विवाद हुआ वहां कांग्रेस को डॉ. महेंद्र सिंह पाल को मैदान में उतारना पड़ा। जो भाजपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट से बुरी तरह चुनाव हार गए और एक जिताऊ सीट कांग्रेस के हाथ से चली गई। वहीं भाजपा के महेश जीना ने सल्ट सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत रावत को भी हरा दिया। सल्ट व रामनगर की सीट तो इस विवाद के कारण कांग्रेस के हाथ से निकल ही गई। लाल कुआं सीट से कांग्रेस प्रत्याशी संध्या बड़ाकोटी का टिकट काटने पर हरीश रावत को उनकी नाराजगी का खामियाजा अपनी करारी हार के रूप में चुकाना पड़ा। चुनाव मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में कूदी संध्या बड़ाकोटी के कारण ही हरीश रावत की इतनी बड़ी हार हुई कि वह 17 हजार से भी अधिक वोटों से हार गए।
हरीश रावत की इस एक चाल से कांग्रेस को 3 सीटों पर नुकसान हुआ वहीं रंजीत सिंह रावत और खुद हरीश रावत की हार का बड़ा कारण यह विवाद बना। सहसपुर सीट पर भी कांग्रेस प्रत्याशी आर्येन्द्र शर्मा को जिस हार का सामना करना पड़ा उसके पीछे भी मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उस फैक्टर को ही माना जा रहा है जिसकी उपज हरीश रावत को बताया जा रहा है। खैर अब जो होना था हो चुका लेकिन उनका स्वयं को सीएम का चेहरा बनाए जाने की जद्दोजहद को भी लोग कांग्रेस की असफलता से ही जोड़ रहे हैं।

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