आने वाले दिनों में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों में महंगाई का मुद्दा सबसे अहम रहने वाला है। क्योंकि बढ़ती महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ कर रख दी है। बीते 6 सालों में आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों में 150 से लेकर दो सौ फीसदी की जो वृद्धि हुई है वह जनता के लिए असहनीय हो चुकी है। अभी देश में 29 विधानसभा और 3 लोकसभा सीटों के लिए हुए उपचुनावों के परिणामों पर भी इस महंगाई का प्रभाव साफ देखा गया था। जिसके बाद केंद्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा की नींद टूट चुकी है। केंद्र सरकार ने दीपावली से पूर्व केंद्रीय उत्पाद शुल्क में पेट्रोल पर 5 व डीजल पर 10 रूपये लीटर की कटौती की गई है लेकिन यह कटौती सही मायने में ऊंट के मुंह में जीरा ही है। 2014 में केंद्र सरकार को पेट्रोल डीजल के खुदरा दाम का 14 फीसदी मिलता था जो वर्तमान में 32 फीसदी है। केंद्र सरकार ने इन सालों में तेल से 85 लाख करोड़ की कमाई की है। डीजल पर केंद्र सरकार पहले 8 फीसदी उत्पाद शुल्क लेती थी जो अब 35 फीसदी है। सरकार द्वारा वर्तमान में पेट्रोल और डीजल के दामों में जो कमी की गई है उसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि पहले 100 रूपये कीमत बढ़ाई और फिर पांच—दस रूपये घटाई वास्तव में यह आम आदमी को कीमतें कम करने का धोखा देना ही है। केंद्र सरकार अगर वास्तव में आम आदमी को राहत देना चाहती है तो वह पेट्रोल—डीजल को भी जीएसटी के दायरे में क्यों नहीं लाती है केंद्र सरकार को बखूबी पता है कि अगर उसने ऐसा कर दिया तो उसकी पेट्रोल—डीजल पर होने वाली कमाई आधी से भी कम रह जाएगी। पेट्रोल व डीजल की कीमतों का निर्धारण अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों के आधार पर किए जाने तर्क देकर तेल कंपनियों को जब कीमतें तय करने का अधिकार दिया गया था तब लोगों को यह समझाया गया था कि उसे इसका बड़ा फायदा होगा। लेकिन सरकार ने इसका फायदा जनता को नहीं होने दिया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जब तेल की कीमतें कम हुई तो सरकार ने अपने तमाम टैक्सों में उससे भी ज्यादा बढ़ोतरी कर दी जितनी कीमतें कम हुई थी। इससे सरकार ने अपना खजाना तो भर लिया लेकिन आम आदमी की जेब खाली कर दी गई। केंद्र सरकार ने अब चुनाव के मद्देनजर सिर्फ दिखावे के लिए पेट्रोल व डीजल की कीमतों में कमी की गई है इस सत्य को जनता भी समझ रही है। खास बात यह है कि भाजपा शासित राज्यों में सरकार ने जो दो—चार रूपये की कटौती की उस पर अब सियासत भी गर्म है तेल पर भारी टैक्स के जरिए जनता का तेल निकाल देने वाली भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विपक्षी दलों को जो कटघरे में खड़ा किया जा रहा है वह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसा ही है। पेट्रोलियम पदार्थों की इस भारी मूल्यवृद्धि ने आम उपभोक्ता वस्तुओं ही नहीं अपितु पूरे बाजार व्यवस्था में आग ही लगा दी है जिसमें आम जनता झुलस रही है और गरीब कराह रहे हैं।