नहीं रहे पत्रकार, साहित्यकार व फिल्मकार डॉ. आर.के. वर्मा

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देहरादून। एक बहुआयामी प्रतिभा के धनी और अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी डा. आर.के. वर्मा अब हमारे बीच नहीं रहे। 83 वर्षीय डा. आरके वर्मा ने आज लंबी बीमारी के बाद अपने गांधी रोड स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। देश और समाज सेवा में जीवन समर्पित करने वाले डा. आर.के.वर्मा अपने पीछे जो शुन्य छोड़ गए हैं उसे भरा जाना संभव नहीं है। उनके निधन से पत्रकार व साहित्यकार तथा फिल्म जगत में शोक की लहर है।
डा. आर.के. वर्मा का जन्म 20 जुलाई 1939 को उस दौर में हुआ था जब समूचा विश्व द्वितीय विश्वयुद्ध की ज्वाला में धधक रहा था और भारत ब्रिटिश हुकूमत की जंजीरों को तोड़कर फेंकने के लिए छटपटा रहा था। सर्वे भवन्तु सुखिना के दर्शन में विश्वास रखने वाले डा. आर.के. वर्मा ने अपने जीवन में कभी किसी गलत फैसले का समर्थन नहीं किया, यही कारण था कि उन्होंने इमरजेंसी का विरोध पुरजोर तरीके से किया और जेल जाने से भी नहीं डरें। पत्रकारिता और साहित्य को उन्होंने जनसेवा का बेहतर तरीका माना और पत्रकारिता, साहित्य तथा फिल्मकार के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई उनकी प्रमुख कृतियों में उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, दून के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास। फिल्मोग्राफी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज, मैजिक व मिस्ट्री, भूले बिसरे गीत और भूले बिसरे चेहरे तथा राजनीति के चुटकुले आदि प्रमुख पुस्तकें उन्होंने लिखी।
डा. आर.के. वर्मा दैनिक नवजीवन, फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया से भी जुड़े रहे। 4 सितंबर 1979 को देवानंद द्वारा बनाई गई राजनीतिक पार्टी एनपीआई के भी वह सदस्य रहे। डा. आर.के.वर्मा को उत्तराखंड में सहकारिता आंदोलन का जनक माना जाता है। उन्होंने नागरिक परिषद की स्थापना की जो उत्तराखंड की प्रतिभाओं को उत्तराखंड और दूून रत्न पुरस्कार से सम्मानित करती आई है। जिसने काबीना मंत्री सतपाल महाराज से लेकर पूर्व सीएम नित्यानंद स्वामी सहित अनेक विभूतियों को दून रत्न सम्मान से नवाजा है। उत्तराखंड में उन्होंने ही सबसे पहले जर्नलिस्ट क्लब उत्तराखंड का गठन किया था। डा. आर.के. वर्मा का कृतित्व और व्यक्तित्व इतना वृहद था कि उसके बारे में लिखना या कुछ कह पाना संभव नहीं है।
वह अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं उनका निधन एक अपूर्व क्षति है उनका अंतिम संस्कार आज शाम तीन—चार बजे के बीच लख्खी बाग श्मशान घाट में किया जाएगा हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दे तथा परिजनों को इस दुख को सहने की क्षमता प्रदान करें।

देहरादून। एक बहुआयामी प्रतिभा के धनी और अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी डा. आर.के. वर्मा अब हमारे बीच नहीं रहे। 83 वर्षीय डा. आरके वर्मा ने आज लंबी बीमारी के बाद अपने गांधी रोड स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। देश और समाज सेवा में जीवन समर्पित करने वाले डा. आर.के.वर्मा अपने पीछे जो शुन्य छोड़ गए हैं उसे भरा जाना संभव नहीं है। उनके निधन से पत्रकार व साहित्यकार तथा फिल्म जगत में शोक की लहर है।
डा. आर.के. वर्मा का जन्म 20 जुलाई 1939 को उस दौर में हुआ था जब समूचा विश्व द्वितीय विश्वयुद्ध की ज्वाला में धधक रहा था और भारत ब्रिटिश हुकूमत की जंजीरों को तोड़कर फेंकने के लिए छटपटा रहा था। सर्वे भवन्तु सुखिना के दर्शन में विश्वास रखने वाले डा. आर.के. वर्मा ने अपने जीवन में कभी किसी गलत फैसले का समर्थन नहीं किया, यही कारण था कि उन्होंने इमरजेंसी का विरोध पुरजोर तरीके से किया और जेल जाने से भी नहीं डरें। पत्रकारिता और साहित्य को उन्होंने जनसेवा का बेहतर तरीका माना और पत्रकारिता, साहित्य तथा फिल्मकार के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई उनकी प्रमुख कृतियों में उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, दून के स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास। फिल्मोग्राफी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज, मैजिक व मिस्ट्री, भूले बिसरे गीत और भूले बिसरे चेहरे तथा राजनीति के चुटकुले आदि प्रमुख पुस्तकें उन्होंने लिखी।
डा. आर.के. वर्मा दैनिक नवजीवन, फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया से भी जुड़े रहे। 4 सितंबर 1979 को देवानंद द्वारा बनाई गई राजनीतिक पार्टी एनपीआई के भी वह सदस्य रहे। डा. आर.के.वर्मा को उत्तराखंड में सहकारिता आंदोलन का जनक माना जाता है। उन्होंने नागरिक परिषद की स्थापना की जो उत्तराखंड की प्रतिभाओं को उत्तराखंड और दूून रत्न पुरस्कार से सम्मानित करती आई है। जिसने काबीना मंत्री सतपाल महाराज से लेकर पूर्व सीएम नित्यानंद स्वामी सहित अनेक विभूतियों को दून रत्न सम्मान से नवाजा है। उत्तराखंड में उन्होंने ही सबसे पहले जर्नलिस्ट क्लब उत्तराखंड का गठन किया था। डा. आर.के. वर्मा का कृतित्व और व्यक्तित्व इतना वृहद था कि उसके बारे में लिखना या कुछ कह पाना संभव नहीं है।
वह अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं उनका निधन एक अपूर्व क्षति है उनका अंतिम संस्कार आज शाम तीन—चार बजे के बीच लख्खी बाग श्मशान घाट में किया जाएगा हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दे तथा परिजनों को इस दुख को सहने की क्षमता प्रदान करें।

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