नया साल नई संभावनाएं

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बीते वर्ष 2021 भारत ही नहीं पूरे विश्व राष्ट्रों के लिए बहुत शुभ नहीं रहा। पूरा साल कोरोना से बचाव के लिए की जाने वाली जद्दोजहद भी बीत गई। लेकिन जो बीत गया सो बीत गया 2021 जो अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका है उस पर आंसू बहाने से कुछ हासिल नहीं हो सकता। क्योंकि इतिहास से सिर्फ सबक सीखा जा सकता है और भविष्य में सर्तक रहा जा सकता है। भले ही 2022 की शुरुआत भी कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन के आतंक और तीसरी लहर की संभावनाओं और आशंकाओं के बीच हो रही है फिर भी शुभ की अपेक्षाओं का दामन नहीं छोड़ा जा सकता है। उम्मीद जिसके बारे में यही कहा जाता है कि दुनिया उम्मीद पर ही कायम है इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि नए साल का आगमन समूचे विश्व और मानव समाज के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा। भले ही कोरोना अभी भी समाप्त नहीं हुआ है लेकिन कोरोना के कारण जितना नुकसान हो चुका है अब उससे अधिक कुछ नहीं होगा। कोरोना से बचाव के अब बहुत सारे उपाय खोज लिए गए हैं और जो नहीं खोजे जा सके हैं वह खोज लिए जाएंगे। भारत में अब तक 60—65 फीसदी लोगों का वैक्सीनेशन हो चुका है और यह प्रक्रिया अभी भी गतिमान है, वहीं अब बूस्टर डोज का विकल्प भी हमारे सामने है सीधी बात है कोरोना से अब जान का खतरा वैसा नहीं हो सकता है जैसा बीते साल रहा। कोरोना के कारण आर्थिक गतिविधियों पर जो विराम लग चुका था वह भी हट चुका है तथा अर्थव्यवस्था की गति जितनी धीमी हुई थी उससे भी कहीं अधिक तेज गति से उसमें सुधार हो रहा है। कोरोना काल में सबसे बड़ा नुकसान बच्चों की पढ़ाई का हुआ है लंबे समय तक स्कूलों के बंद रहने से पढ़ाई लिखाई करने की मानसिकता गंभीर रूप से प्रभावित हुई है। भले ही कुछ भी हो लेकिन वैसी स्थिति भविष्य में कभी उत्पन्न नहीं होने दी जानी चाहिए। क्योंकि बच्चे ही देश और समाज का भविष्य हैं। समाज के हर वर्ग की यह जिम्मेदारी है कि वह किसी भी सूरत में ऐसे हालात पैदा न होने दें। हमारी किसी भी लापरवाही के कारण ऐसा होता है तो इतिहास हमें कभी भी माफ नहीं करेगा। इन दिनों पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के लिए जो रैलियां हो रही है वह ऐसी ही लापरवाही का नमूना है। कोरोना को लेकर अभी भी सभी को सतर्क रहने की जरूरत है। भीड़भाड़ वाली जगहों से दूरी बनाकर रखना और मांस्क अनिवार्य प्रयोग करना हर आदमी की निजी जिम्मेवारी है। नए साल और क्रिसमस के कार्यक्रमों में जुटने वाली भीड़ क्या हमारी लापरवाही को नहीं दर्शाती है? रैलियां, जलसे—जुलूस और जश्न तथा आस्था सब कुछ तभी संभव है जब जान सुरक्षित रहेगी। इस कोरोना काल ने कम से कम हम सभी को इतना तो सिखा ही दिया है कि सामाजिक सुरक्षा का मतलब सामूहिक जिम्मेवारी ही होता है। आशा और अपेक्षा की जानी चाहिए कि 2022 नए सृजन और नवनिर्माण व नवचेतना का साल साबित होगा।

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