लो! अब नेताजी से यह सांप—नेवला हो गए

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`आपदा काले मर्यादा ना अस्ति, यह लोकोक्ति कल भी सही थी और आज भी सही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अगर अपनी राजनीतिक वरिष्ठता और प्रतिद्वंन्दता को तज कर काबीना मंत्री हरक सिंह को फोन किया और उनसे आपदा प्रभावितों की मदद करने का आग्रह किया तो उनकी इस पहल को राजनीतिक सुचिता उत्कृष्ठता का एक उदाहरण कहा जा सकता है। हरीश रावत को अगर राजनीति का एक कुशल खिलाड़ी कहा जाता है तो उसके निःतार्थ उनकी बेबाक वाकपटुता का बड़ा योगदान है। अभी चंद दिन भी नहीं गुजरे हैं जब यही हरीश रावत 2016 की उस घटना के लिए जिसके तहत उनकी सत्ता का तख्तापलट की कोशिश के लिए वह उन्हें महापापी बताकर उनसे माफी मांगने की बात कर रहे थे। वहीं डॉ हरक सिंह हरीश रावत की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए यह कह रहे थे कि राजनीति में सब कुछ हो सकता है लेकिन हरीश रावत का विश्वास नहीं किया जा सकता। चुनाव से पूर्व इन दोनों नेताओं के बीच बीते दिनों जिस तरह का वाक युद्ध देखा गया उस तरह के हालात में कोई सोच भी नहीं सकता है कि यह छोटे और बड़े भाई एक दूसरे के साथ इस अंदाज में पेश हो सकते हैं। जिस अंदाज में हरीश रावत ने हरक सिंह को आपदा प्रभावितों की मदद का आग्रह यह कहते हुए किया गया है कि आपदा काल में सांप और नेवले भी साथ तैर लेते हैं हम तो फिर भाई हैं। उनके इस अंदाज ए बयां का अब लोग जो चाहे वह अर्थ निकाले लेकिन हरीश रावत को जो कहना था वह उन्होंने कह ही दिया। डॉ हरक सिंह तो यह भी नहीं सोच पा रहे हैं कि उन्होंने मुझे सांप कहा है या नेवला या फिर हम दोनों में कौन सांप है और कौन नेवला। हैरान करने वाली बात यह है कि हमारे यह नेता कब नेता से सांप और नेवला हो गए। क्या हरीश रावत इन शब्दों के जरिए यह कहना चाहते हैं कि सांप और नेवले के बीच जो अदावत की जंग रहती है वह जंग मेरे तुम्हारे बीच कभी खत्म नहीं हो सकती है। भले ही तुम फिर से कांग्रेस में आ जाओ और इस चुनावी आपदा से निपटने में हम और तुम साथ—साथ खड़े हो। हरीश रावत के इस जुमले के आप चाहे जितने भी मतलब निकाल लें लेकिन आप या कोई भी आम आदमी इसके निष्कर्षों तक नहीं पहुंच सकता है। क्योंकि यह हरीश रावत का बयान है जिन्हें लोग खांटी राजनीतिज्ञ मानते हैं। यही कारण है कि उनके इस बयान के बाद सियासी गलियारों में एक बार फिर इन चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है कि डॉ हरक और हरीश के बीच जो चल रहा है वह उनके फिर कांग्रेस में आने का संकेत है। भले ही इस बाबत डॉ हरक सिंह यह कह रहे हो कि अभी उन्होंने कांग्रेस में जाने के लिए कोई आवेदन पत्र नहीं भरा है। लेकिन छोटे भाई व बड़े भाई के बीच जो राजनीतिक रिश्ता है वह उनके एक दूसरे के बारे में दिए जाने वाले बयानों से भी अधिक गहरा है। आपदा के बहाने ही सही यह संवाद और मुलाकातों का सिलसिला कभी भी कोई गुल खिला सकता है।

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