हसरतों की उड़ान बेमायने

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चुनाव के दौरान नेता क्या कहते हैं? और जनता क्या सोचती है तथा नेताओं की बातों व वायदों पर कितना भरोसा करती है यह अलग—अलग विषय है। जनता के बारे में एक बात साफ है कि वह सुनती सभी की है लेकिन करती अपने मन की है। जनता अपनी प्राथमिकताएं खुद तय करती है और उसी के आधार पर अपना वोट करती है। यह समझ से बाहर है कि उत्तराखंड की जनता को जो फैसला करना था वह 14 फरवरी को कर चुकी है। इस बार किसकी सरकार बनेगी इसका फैसला 10 मार्च को हो जाएगा। लेकिन सूबे के नेता अभी भी तेरी नहीं मेरी बनेगी सरकार जैसे दावे करने में जुटे हुए है, इस तरह के बयान चुनाव (मतदान) से पूर्व तो समझ में आते हैं और इसे मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश माना जा सकता है लेकिन जब फैसला ईवीएम में बंद हो चुका है तब नेताओं के बीच जो तू—तू मैं—मैं हो रही है उसका कोई औचित्य नहीं है। उत्तराखंड का चुनाव इस बार पिछले सभी चुनावों से अलग तरह का चुनाव रहा है। अब तक इस राज्य का चुनाव सिर्फ दो पार्टियों के बीच होने वाला चुनाव होता था लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ही नहीं जिसने सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ा के अलावा बसपा ने भी 64 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं आम आदमी पार्टी और बसपा के प्रत्याशियों को भले ही कितने भी कम प्रतिशत वोट मिले हो लेकिन यह वोट प्रतिशत भाजपा या कांग्रेस के खाते में से ही कम होगा। जिसका असर चुनाव परिणाम में बहुत अधिक न सही लेकिन पड़ेगा जरूर। एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि सूबे की राजनीति में पहली बार मुफ्त की सुविधाएं और सौगाते देने के वायदे आम आदमी पार्टी सहित सभी दलों द्वारा किए गए हैं। जिसमें आप के बाद कांग्रेस दूसरे नंबर पर है और भाजपा तीसरे पर। सवाल यह है कि क्या दिल्ली की तरह उत्तराखंड की जनता भी इन मुफ्त की सुविधाओं और सौगातों को प्राथमिकता देते हुए उन्हें वोट दे सकती है? इसका सही जवाब भले ही 10 मार्च को ही मिले लेकिन इसका बिल्कुल भी प्रभाव चुनाव पर नहीं पड़ेगा, अगर आप यह सोच रहे हैं तो वह गलत है। इस चुनाव में एक तीसरी बात जो अन्य चुनावों से अलग थी वह है भाजपा और कांग्रेस का आंतरिक असंतोष। ऐसा नहीं है कि यह पहली बार देखा गया हो, पहले भी हर एक चुनाव में बगावत और भितरघात किसी को नुकसान तो किसी को फायदा पहुंचाते रहे हैं लेकिन जितने व्यापक स्तर पर इस बार असंतोष देखा गया है वह सबसे ज्यादा है। कोरोना प्रभावित इस वर्तमान चुनाव में प्रचार के बदले हुए तरीकों का भी प्रभाव पड़ना तय है। इतने सारे नए फैक्टर के बीच संपन्न हुए राज्य के वर्तमान विधानसभा चुनाव के परिणाम भी अलग तरह के हो सकते हैं। यह चुनाव परिणाम भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों को चौका भी सकते हैं। बड़ी—बड़ी बातें और दावे करने वाले इन नेताओं को अभी धैर्य से 10 मार्च का इंतजार करना चाहिए। सरकार बनाने और मुख्यमंत्री बनने की उनकी हसरतें तभी पूरी होगी जब उनकी पार्टी 35 से अधिक सीटें जीत पाएगी। जो नेता अभी से हसरतों की उड़ान भर रहे हैं उसके अभी कोई मायने नहीं है।

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