हार के बाद जीत

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पुष्कर सिंह धामी भले ही मुख्यमंत्री रहते हुए चुनाव हार गए लेकिन पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लीक से हटकर फैसला लेते हुए उन्हें ही दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जाना बेवजह नहीं है। चुनाव से सिर्फ 8 महीने पहले उन्हें जिन हालातों में प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था वह अत्यंत ही विपरीत परिस्थितियां थी। इससे पूर्व एक मुख्यमंत्री अपने चार साल और दूसरा मुख्यमंत्री अपने 4 माह के कार्यकाल को धूल में मिला चुके थे। प्रचंड बहुमत वाली सरकार की उपलब्धियां शुन्य थी। मुख्यमंत्रियों की अदला—बदली ने हालात और भी विसंगत बना दिए थे। लेकिन पुष्कर सिंह धामी ने अपनी पूरी योग्यता और क्षमता झौंक कर काम शुरू कर दिया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पुष्कर धामी चाहे कुछ भी कर लेते वह पार्टी को चुनाव में इतनी बड़ी जीत नहीं दिला सकते थे। यह जीत भाजपा को धामी के काम पर नहीं मोदी के नाम और केंद्रीय योजनाओं पर मिली, जो महिलाओं के लिए कल्याणकारी थी। धामी ने मोदी और शाह की नीतियों पर काम भर काम करने का काम किया लेकिन यह भी कोई कम बड़ी बात नहीं थी उनसे पहले वाले मुख्यमंत्री तो वैसा भी कुछ नहीं कर सके थे। एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर यह जीत धामी का ही करिश्मा होती तो वह खुद भी चुनाव नहीं हारे होते। धामी की मेहनत और भाग्य ने उनका साथ दिया और भाजपा जिसे जीत की संभावनाए भी नजर नहीं आ रही थी, बड़े बहुमत के साथ जीत गई। इस चुनाव के दौरान भाजपा की जीत का प्रमुख आधार मुफ्त बांटा गया राशन और महिला मतदाताओं का जो समर्थन मिला उसकी सबसे बड़ी भूमिका रही। लेकिन भाजपा को मिली इस बड़ी जीत की पटकथा मुख्यमंत्री धामी के नेतृत्व में ही लिखी गई। धामी को चुनाव के दौरान अगर केंद्रीय नेतृत्व का सहयोग भी वैसा नहीं मिला होता जैसा मिला तब भी यह जीत आसान नहीं थी लेकिन जो जीता वही सिकंदर कहलाता है। खुद चुनाव हारने के बाद पुष्कर सिंह धामी थोड़े निराश जरूर थे लेकिन भाजपा की ऐतिहासिक जीत ने उनकी असफलता के दर्द को जुबान तक नहीं आने दिया। चुनाव के दौरान पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उनके काम और राजनीति कौशल को न सिर्फ नजदीक से देखा गया था अपितु उनके कंधे पर हाथ रखकर उन्हें भावी युवा नेतृत्व का भरोसा भी दिलाया गया था। भले ही उनकी हार के बाद सीएम बनने के सपने की चमक अनेक नेताओं की आंखों में देखी गई हो लेकिन भाजपा की केंद्रीय नेतृत्व को जो धामी में दिखा वह अन्य किसी नेता में नहीं दिखा। यही कारण है कि भाजपा हाईकमान ने उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनाकर उनकी जिम्मेवारी को पहले से भी अधिक बढ़ा दिया गया है अब उन्हें खुद भी चुनाव जीतना है तो पार्टी को भी 2024 का चुनाव जिताना है। सबको साथ लेकर चलना और जनता से चुनाव में किए गए वायदों को भी पूरा करना है जो एक बड़ी चुनौती होगा। सफलता के शीर्ष पर पहुंचना जितना मुश्किल होता है उससे भी कहीं ज्यादा मुश्किल होता है सफलता के शीर्ष पर टिके रहना। राजनीति के अखाड़े में यह चुनौती और भी बड़ी हो जाती है धामी के लिए यह समझना सबसे ज्यादा जरूरी है।

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