नये वक्फ बिल को लेकर इन दिनों भारी कोहराम की स्थिति बनी हुई है। देश की संसद में पारित हुए इस कानून को देश की सर्वाेच्च अदालत में दी गई चुनौतियों पर एक तरफ सुनवाई जारी है तो दूसरी तरफ भाजपा शासित राज्यों में इस पर कोर्ट द्वारा अंतरिम रोक लगाने के बावजूद इस कानून पर क्रियान्वयन भी शुरू कर दिया गया है और कानून के क्रियान्वयन को लेकर भी एफआईआर दर्ज कराने का सिलसिला शुरू हो चुका है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ से लेकर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरन रिजिजू इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई पर न सिर्फ सवाल उठा चुके हैं बल्कि न्यायपालिका को चेतावनी और धमकियंा दे चुके हैं। स्थिति इस कदर गंभीर रूप लेती जा रही है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सर्वाेच्च कौन? जैसे सवालों का उठना चिंताजनक है क्योंकि संविधान में सभी के कार्य क्षेत्र और अधिकार क्षेत्र की सीमाओं का उल्लेख विस्तार से किया गया है। कांग्रेस नेता और अधिवक्ता कपिल सिब्बल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को जो अधिकार प्राप्त है वह किसी सरकार द्वारा नहीं दिए गए हैं बल्कि संविधान ने दिए हैं जिस संविधान के अनुच्छेद 142 को उपराष्ट्रपति एटॉमिक बम बता रहे हैं वह संवैधानिक व्यवस्था है और संविधान से ऊपर तो न राष्ट्रपति हो सकते हैं न उपराष्ट्रपति न कोई राज्य पाल। उनका कहना है कि उन्हें ऐसा लगता है कि जो भी फैसले सुप्रीम कोर्ट करता है वह अगर सत्ता के अनुकूल होते हैं तो वह सभी ठीक होते हैं लेकिन अगर कोई फैसला सत्ता की भावना के अनुकूल नहीं होता है तो उस पर कहा जाता है कि ऐसा फैसला कोर्ट कैसे कर सकता है या दो जजों की बेंच कैसे फैसला ले सकती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट है उसकी चाहे एक सदस्यीय बैच का फैसला हो या 13 सदस्य बेंच का वह सभी को मान्य होता है कपिल सिब्बल उदाहरण देकर कहते हैं कि जब इंदिरा गांधी के इलेक्शन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था तो उसे एकल पीठ ने दिया था जस्टिस कृष्णा अय्यर के इस फैसले को क्यों सही माना गया था। उनका साफ कहना है कि सरकार व सत्ता में बैठे लोग सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले को गलत या सही ठहराने का अधिकार नहीं रखते हैं अभी राज्यपाल पर आए जस्टिस पादरी का फैसला उनके कहने से सही या गलत नहीं हो सकता न वक्फ बिल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही गलत नहीं हो सकता है। अभी इस बिल पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यहां हम जाति धर्म को साथ लेकर नहीं बैठते है और न ही हमारा कोई जाति धर्म फैसला लेते समय होता है। अभी वक्फ बिल पर सुनवाई गतिमान है। सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला क्या होगा यह तो फैसला आने के बाद ही पता चलेगा लेकिन फैसला सरकार के पक्ष में हो इसके लिए चौतरफा माहौल और दबाव जरूर बनाया जा रहा है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा जिस तरह के सवाल उठाये गए हैं उसे लेकर सत्ता पक्ष में बेचैनी जरूर है और उसे यह लग रहा है कि यह आने वाला फैसला उनके पक्ष में आने वाला नहीं है यही कारण है कि इस स्थिति से निपटने की तैयारियंा की जा रही है। अब तो इसे लेकर मध्यवर्ती चुनाव तक परिचर्चा शुरू हो गई है क्योंकि सरकार के सहयोगी दलों में और भी अधिक बेचैनी का माहौल है वहीं उनके हित प्रभावित हो रहे हैं।