सड़ा हुआ सिस्टम, बेपरवाह सरकार

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जिस नेट और नीट पेपर लीक मामले को लेकर इस समय पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है वह इस देश के सिस्टम का सबसे बड़ा सच है। दाल में कुछ काला है यह कहावत इस देश के सिस्टम पर फिट नहीं बैठती है क्योंकि यह सिस्टम उस हद तक सड़ और गल चुका है कि यहां सब कुछ काल ही काला है सफेद तो कुछ बचा ही नहीं है। देश के युवाओं के भविष्य के साथ यह खेल लंबे समय से जारी है। 10 साल पहले जब नरेंद्र मोदी ने देश की सत्ता संभाली थी तब सिर्फ देश के लोगों को अच्छे दिन लाने का ही भरोसा नहीं दिया गया था उनका कहना था कि न खाऊंगा न खाने दूंगा। तब से लेकर अब तक कितने नेता और अधिकारी कितना खा गए और पचा गए? इसका कोई हिसाब किताब लगाना भी संभव नहीं है। खैर छोड़िए इस बात को इसका हिसाब किताब जब सत्ता बदलेगी तब होता रहेगा। बात उन 25 लाख युवाओं की करते हैं जिन्होंने नीट की परीक्षा दी। उन्होंने अपनी परीक्षा की तैयारी पर कितना पैसा और समय खर्च किया उसकी कोई भरपाई न तो वह सरकार कर सकती है जो अब इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप चुकी है और न सुप्रीम कोर्ट जिसके आदेश के बाद ग्रेस मार्क लाने वाले 1563 छात्रों की दोबारा परीक्षा कराई गई है। सरकार द्वारा एन टी ए के डीजी को भी उनके पद से हटा दिया गया है। सवाल इस बात का है कि केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जिन्होंने पेपर लीक का मामला सामने आने पर एनटीए को क्लीन चिट दी थी वह क्यों पद पर बैठे हुए हैं जबकि अब तो सब कुछ साफ हो चुका है पेपर लीक हुआ है इस सच को इस मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपी खुद कबूल कर रहे हैं। इस मामले में जिस तरह के नए—नए खुलासे हो रहे हैं वह चौंकाने वाले हैं। नीट की परीक्षा परिणामों में टॉपर छात्रों की सूची के आठ नाम में से 6 टॉपर छात्र हरियाणा के झज्जर स्थित एक ही परीक्षा केंद्र के हैं। जिसे एक भाजपा नेता का स्कूल बताया जा रहा है। वहीं अब तक जिन लोगों की गिरफ्तारियां हुई है उनमें बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव के निजी सचिव भी शामिल है। बात अगर भर्ती घोटाले की की जाए तो देश का कोई भी प्रदेश इससे अछूता नहीं रहा है। बात नीट और नेट की नहीं हर एक छोटी व बड़ी भर्ती में व्यापक स्तर पर घपले और घोटालों का क्रम देश में जारी है। जिसे रोकने में केंद्र से लेकर राज्य तक की सरकारे नाकाम रही है जिसकी वजह रही है शासन व सत्ता में बैठे लोगों की संलिप्पतता तथा कारपोरेट की सहभागिता। लाखों करोड़ों के इस खेल में पूरे का पूरा सिस्टम शामिल है। अब यह देखना है दिलचस्प होगा कि इसकी जांच कहां तक पहुंच पाती है लोकसभा चुनाव में अगर विपक्ष ने इस मुद्दे पर सत्ता पक्ष को गंभीर आघात नहीं पहुंचाया होता तो शायद यह मामला आसानी से रफा दफा हो जाता लेकिन विपक्ष जो अभी भी इसे लेकर सरकार की ईंट से ईंट बजाने पर आमादा है और देश भर के युवा सड़कों पर उतरकर विपक्ष के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं तब इस आग को अब आसानी से बुझा पाना सरकार के लिए आसान काम नहीं होगा। इस परीक्षा को पूर्णतया रद्द कर फिर से परीक्षा कराने और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करने व भविष्य में इस पर पूरी तरह रोक लगाने के पुख्ता इंतजाम किए बगैर बात बनने वाली नहीं है।

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