कल शाम तक जिस उत्तराखण्ड राज्य में आसमान से आग बरस रही थी वहीं कुछ मिनटों में अचानक मौसम का मिजाज इतनी तेजी से बदला कि देखते ही देखते पारा 15 से 16 डिग्री तक नीचे लुढ़क गया। तेज आंधी और उसके साथ झमाझम बारिश ने पारे को 38 डिग्री से 24 पर लाकर पटक दिया। जो बीते 20 दिनों से रात में भी 28 से नीचे आने का नाम नहीं ले रहा था। सर्वकालिक रिकार्ड के साथ 43.30 डिग्री तक पहुंचे इस पारे ने उत्तराखण्ड वासियों को परेशान कर रखा था। मगर उससे निजात मिलने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी। सिर्फ दो घंटे में ही इस मौसम के बदले मिजाज से जैसे राहत की बरसात हो गयी। मगर इस तरह के बड़े बदलाव आम आदमी ही नहीं सभी जीवधारियों के जीवन के लिए राहत देय कम नुकसान देय ज्यादा होते है। आम तौर पर जब मौसमी बदलाव का दौर होता है तो डाक्टरों द्वारा इस बात की सलाह दी जाती है कि उस समय और अधिक अहतियात बरतने की जरूरत होती है। उत्तराखण्ड के लोगों को खास तौर पर वैसे मौसम के मिजाज की उम्मीद नहीं होती है जैसा वह इस साल देख रहेे है। राज्य के मैदानी हिस्सो में ही नहीं इस साल पहाड़ी इलाकों में भी भीषण गर्मी का प्रकोप देखा गया है। गर्मी के कारण प्राकृतिक जल स्रोतों का बड़ी संख्या में सूखना और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने को लेकर पर्यावरण विद चिंतित है। दरअसल मौसम के मिजाज में आने वाला यह परिवर्तन कोई एक दो महीने या साल में नहीं आया है। राज्य बनने के बाद उत्तराखण्ड के प्राकृतिक स्वरूप धीरे—धीरे होने वाले उस परिवर्तन का ही नतीजा है जिससे अनजान बनने की कोशिशें की जाती है। उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद शहरी क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण और आबादी के साथ वाहनों की संख्या में हुई भारी वृद्धि के दीर्घकालीन परिणामों पर कभी गौर नहंीं किया गया है। सड़कों के निर्माण के लिए हो या फिर भवनों के निर्माण के लिए पेड़ो का जिस तरह से अंधाधुंध कटान पिछले 20 सालों से जारी है वह किसी से छिपा हुआ नहीं है। राज्य बनने से पहले दून मेंं जहंा पंखो तक का इस्तेमाल भी रश्मि तौर पर किया जाता था अब वहंा पंखों की उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। अब बिना कूलर और एसी के गुजारा नहीं हो पा रहा है। पेड़ो का जो कटान हो रहा है वह तो हो ही रहा है। इसके साथ राज्य के जंगलों जो बरसात के चार माह को छोड़कर शेष समय धधकते ही रहते है और वन महकमा इस वनाग्नि को रोकने में नाकाम रहता है। वहीं सूबे के पर्यावरण को असंतुलित बनाने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। भले ही यह पहली बार हुआ हो जब लोगों को यह अहसास हुआ है कि अब पहाड़ और मैदान के मौसम में कोई फर्ख नही रहा है। लेकिन आने वाले सालों में यह हर बार महसूस होने वाला है। जब उत्तराखण्ड को भी उत्तर प्रदेश और हरियाणा, पंजाब की तरह मौसम की विसंगतियों की गम्भीर मार झेलनी पड़ेगी। इस मौसम के मिजाज में इस तरह के खतरनाक बदलाव साल में कई बार झेलने के लिए उत्तराखण्ड के लोगों को तैयार रहना चाहिए। मौसम का यह मिजाज आने वाले समय में अन्य राज्यों की तरह उत्तराखण्ड को लोगों को झेलना पड़ेगा।