यात्रियों की सुरक्षा, किसकी जिम्मेदारी

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चारधाम यात्रा पर बड़ी संख्या में यात्री आयें, यह तो सभी चाहते हैं लेकिन इन यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं होता। कोई भी हादसा होता है तो उसकी जांच के आदेश देने और मृतकों के प्रति संवेदनाएं जताने तथा घायलों को रेस्क्यू कर उनका इलाज करा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। दुर्घटना के कारणो तक पहुंचने और उनके निवारण के प्रयास न किए जाने के कारण ही इनका सिलसिला बदस्तूर जारी रहता है। अभी रुद्रप्रयाग में एक यात्री वाहन के अलकनंदा में गिरने से 15 लोगों की जान चली गई पता चला कि उक्त वाहन के न तो कागजात पूरे थे तथा वहां में क्षमता से अधिक सवारियां भरी हुई थी। इसके बाद परिवहन विभाग की नींद टूटी और वाहनों की फिटनेस और ओवरलोडिंग को लेकर ड्राइव चलाया गया। जिसमें 60 से अधिक वाहनों के चालान किए गए हैं। सवाल यह है कि जिस वाहन दुर्घटना में 15 यात्रियों की जान चली गई वह वहां किस तरह से ऋषिकेश से लेकर दुर्घटना स्थल तक लगभग 175 किलोमीटर का सफर कर गया और उसे किसी ने भी चेक क्यों नहीं किया? अगर उसकी फिटनेस और ओवरलोडिंग की जांच पहले ही कर ली गई होती तो शायद इस हादसे को टाला जा सकता था। यह तो सिर्फ एक मिसाल भर है बात सड़कों की मरम्मत की हो या फिर उन पर किए जाने वाले सुरक्षा प्रबंधन की। स्वास्थ्य सेवाओं की हो या फिर परिवहन की। यात्रा मार्गों पर जन सुविधाओं की हो या फिर आम जरूरत के सामान की ओवर रेटिंग और धामों में रहने खाने की व्यवस्था की। इन सभी व्यवस्थाओं को अलग—अलग विभागों द्वारा देखा जाता है। धामों में हेली सेवा देने वाली कंपनियों की बात करें तो यात्रियों के साथ आए दिन ठगी के मामलों से लेकर दुर्घटनाओं तक अनेक मामले सामने आते रहते हैं। अभी केदारपुरी में लैंडिंग के दौरान एक हादसा होते—होते बच गया था। चार धाम यात्री चाहे कहीं भी हो सड़क से लेकर हवा और पैदल मार्गाे से लेकर धामों तक वह कहीं भी स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाते हैं। उन्हें हर वक्त अपनी सुरक्षा का भय बना रहता है। धाम खुलने के साथ ही यमुनोत्री पैदल मार्ग पर 10 घंटे तक लोग जाम में फंसे रहे महिलाओं और बच्चों ने इस दौरान क्या यातनाएं झेली यह वही जानते हैं। हर साल चार धाम यात्रा के दौरान सैकड़ो लोग अलग—अलग कारणों से अपनी जान गंवा देते हैं मगर इसकी जिम्मेदारी कोई भी नहीं लेता। वैसे तो हम 2013 जैसी केदारधाम आपदा झेल चुके हैं जिसमें हजारों लोगों की जान चली गई लेकिन यह अत्यंत ही दुखद है कि हम छोटे से छोटे और बड़े से बड़े हादसे से कोई भी सबक लेने को तैयार नहीं है। बस यात्रा पर अधिक से अधिक लोग आए। सरकार व व्यवसायियों की अच्छी कमाई हो यात्रियों को क्या दिक्कत है और परेशानियां हो रही है इससे किसी को कोई सरोकार नहीं है जब भी कोई बड़ा हादसा होता है तो दो—चार दिन सतर्कता दिखाई जाती है और फिर वही पुराना ढर्रा जारी रहता है। किसी भी एक संस्था या विभाग की जिम्मेवारी न होने के कारण सभी विभाग एक दूसरे के सर आरोप मढ़कर बचने का रास्ता ढूंढ़ लेते हैं। जब तक यात्रा का प्रबंध संपूर्ण रूप से किसी एक संस्था के हवाले नहीं होगा तब तक यात्रियों की सुरक्षा का सवाल भी सवाल ही रहेगा। चारधाम यात्रा को शुरू हुए अभी डेढ़ माह ही हुआ है और 150 लोगों की जान जा चुकी है इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार है।

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