यह कैसा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस?

0
47


भले ही सत्ता में बैठे लोगों द्वारा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का ढोल पीटा जाता रहे लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जो भी जहां जो कुछ घपला घोटाला कर सकता है, करने से नहीं चूकता है। इन दिनों उत्तराखंड की सियासत में देहरादून नगर निगम की स्वच्छता समितियाें में फर्जी नियुक्तियों के जरिए किए गए घोटाले का मामला सुर्खियों में है। देहरादून नगर निगम में 100 वार्ड है इनमें से 99 वार्डों में मोहल्ला स्वच्छता समितियों में 99 पर्यावरण मित्रों की नियुक्तियां दिखाकर उनका मानदेय निकाल लिया गया। फर्जीवाड़ा सामने आने पर नगर निगम प्रशासक जिलाधिकारी सोनिका द्वारा इस मामले की जांच करने का काम नगर आयुक्त को सौंपा गया है। मोहल्ला स्वच्छता समितियाेंं में 8 से 12 तक कर्मचारियों की नियुक्तियां होती है। जिसमें फर्जी नियुक्तियां दिखाकर करोड़ों का फर्जीवाड़ा किया गया है। सवाल यह है कि इन समितियों में काम करने वालों का वार्ड पार्षद और सुपरवाइजर सत्यापन करते हैं और सफाई निरीक्षक द्वारा इसे वेरीफाई करने के बाद ही इन कर्मचारियों को मानदेय दिया जाता है। सवाल यह है कि पार्षद,सुपरवाइजर और नगर स्वास्थ्य अधिकारी तथा वित्त विभाग में बैठे अधिकारी जो मानदेय भुगतान की सस्ंतुति करते हैं क्या इन सभी की मिली भगत के बिना इस तरह की धांधली किया जाना संभव हो सकता है। इससे भी हास्यापद बात यह है कि निर्वतमान मेयर सुनील उनियाल गामा का कहना है कि पहले इन कर्मचारियों को वेतन डीवीटी के जरिए भुगतान किया जाता था लेकिन गड़बड़ी की आशंका के मद्देनजर इस व्यवस्था को बदल दिया गया और समितियों के खाते में वेतन भेजा जाने लगा। लेकिन इस व्यवस्था में गड़बड़ी की बात सामने आई तो फिर डीवीटी सिस्टम को लागू कर दिया गया। अब शहरी विकास मंत्री कह रहे हैं की डीवीटी की व्यवस्था को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी इसकी भी जांच कराई जाएगी। इसके लिए शासन से अनुमति ली गई या नहीं अगर बोर्ड ने मनवाने तरीके से ऐसा किया है तो मामला गंभीर है। इस मामले का एक अन्य अहम पहलू यह भी है कि इस मामले की जांच का जिम्मा नगर निगम के स्वास्थ्य विभाग को ही सौंपा गया है जो सफाई कर्मियों की नियुक्ति करता है ऐसे में यह जांच का काम कितने निष्पक्ष ढंग से हो सकेगा समय ही बताएगा यह कोई एक अकेला मामला नहीं है इससे पूर्व भी दून नगर निगम और मेयर (निर्वतमान) गामा आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने से लेकर अन्य मामलों को लेकर चर्चाओं में रह चुके हैं। भले ही दावा यह किया जा रहा हो कि जिन लोगों ने घपला किया है न वह बचेंगे और न वह बच पाएंगे जो इस मामले को रफा दफा करने में जुटे हुए हैं। लेकिन राज्य गठन से लेकर अब तक तमाम छोटे बड़े घपले घोटालों का इतिहास बताता है कि किसी भी मामले के सामने आने पर थोड़े समय हाय—हंगामा रहता है उसके बाद सब बीते कल की बात मानकर भुला दिया जाता है। कागजों में फर्जी कर्मचारी दिखाने वाला कौन है। इन फर्जी कर्मचारी का सत्यापन करने वाला कौन है। किसने स्वच्छता समितियों के खाते में से इस वेतन को निकाला? यह कोई ऐसा मुश्किल काम नहीं है जिसका पता नहीं लगाया जा सकता। सवाल सिर्फ इच्छा शक्ति का है। यह इच्छा शक्ति आएगी कहां से जब ऊपर से लेकर नीचे तक सभी ने भ्रष्टाचार की गंगा में हाथ धोए हैं तब इसकी जांच भी कैसे संभव है। जो करना है करते रहो लेकिन भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का प्रचार करना मत भूलो।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here