नरेंद्र मोदी कल 9 जून को तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं लेकिन इस बार वह भाजपा के मोदी के रूप में प्रधानमंत्री नहीं बन रहे हैं, वह एनडीए के प्रधानमंत्री होंगे। भले ही वह तीसरी बार प्रधानमंत्री बन रहे हैं लेकिन यह पहली बार हो रहा है कि जब वह बिना अपने सहयोगियों को विश्वास में लिए कोई बड़ा फैसला नहीं ले सकेंगे, और उन्हें अपनी कार्यश्ौली में बड़ा बदलाव लाना पड़ेगा। जो उनके लिए आसान नहीं होगा। दूसरी उनकी एक बड़ी समस्या यह होगी कि भाजपा और संघ में अब उनकी इन चुनाव नतीजों के बाद वैसी स्वीकार्यता नहीं रही है जैसे कि पिछले 10 सालों में रही है। भले ही मोदी को सर्वसम्मति से संसदीय दल का नेता चुन लिया गया हो लेकिन न सिर्फ सांसदों को अपितु संघ को भी अब मोदी प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार्य नहीं है। भाजपा नेता नितिन गडकरी से लेकर गठबंधन के सहयोगी जेडीयू नेता नीतीश कुमार और टीडीपी नेता नायडू तक कोई भी उन्हें अब पीएम बनाए जाने को लेकर संतुष्ट नहीं है। खास बात यह है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन भी मोदी और शाह की सत्ता को अस्वीकार कर रहा है तथा चारों तरफ से इस तरह की आहटें आ रही है कि मोदी की जगह किसी अन्य व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाया जाना चाहिए। लेकिन इसके साथ ही यह भी सच है कि मोदी को ही मुखिया बनाने के लिए उनकी एक लाबी काम पर लगी हुई है। जिसकी सोच है कि मोदी के अलावा अन्य कोई भी नहीं। कल इसी गहमा गहमी के बीच मोदी पीएम पद की शपथ लेकर तीन बार पीएम बनने का इतिहास रचने के लिए ललाहित है। जेडीयू और टीडीपी ने उनके सामने कुछ अहम मंत्रालयों से लेकर लोकसभा स्पीकर पद तक की मांग रख दी है अब कल मंत्रिमंडल गठन और मंत्रियों को दिए जाने वाले मंत्रालय के बाद ही पता चल सकेगा कि किसको इस सरकार में कितनी प्राथमिकता मिल पाती है। इस वक्त तो मोदी सिर्फ नीतीश, नायडू और चिराग के इर्द—गिर्द ही घूम रहे हैं जबकि जयंत चौधरी और जीतन राम मांझी जैसे अन्य तमाम नेता स्वयं को उपेक्षित किए जाने से अत्यंत ही आहत दिख रहे हैं। जिन हालातो में इस बार मोदी सत्ता संभालने जा रहे हैं उसमें वह सहयोगियों के साथ कितना सामंजस्य साध पाने में सफल रहते हैं। लेकिन अब तक जिस मनमाने अंदाज में मोदी काम करते रहे हैं उनके लिए यह कतई भी आसान नहीं होगा। मोदी यह भी अच्छे से जानते हैं कि अब वह जिस सत्ता की नाव पर सवार होने जा रहे हैं वह हवा का एक तेज झोंका भी बर्दाश्त नहीं कर सकती है। सहयोगियों पर पल भर का भी भरोसा नहीं किया जा सकता है 5 साल तो बहुत दूर की बात है। आज अगर तमाम लोग इस सरकार के भविष्य को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं तो वह बेवजह नहीं है। खबर तो यहां तक आ रही है कि भाजपा के कई नेता मोदी को फिर पीएम बनाने से इतने नाराज हैं की पार्टी छोड़कर इंडिया गठबंधन के पाले में जा सकते हैं। मोदी की यह कमजोर सरकार बन भले ही जाए लेकिन अपने पूरे कार्यकाल में टिकी रहेगी इसका भरोसा खुद मोदी को भी नहीं है जो सरकार को लेकर तथा अपनी सरकार के द्वारा बड़े फैसले और कड़े फैसलों का दावा कर रहे हैं।