लोकसभा चुनाव के लिए तीसरे चरण का मतदान संपन्न होने के साथ ही 543 में से 283 पर जनता अपना फैसला ले चुकी है। अभी चुनाव के भले ही चार चरण शेष बचे हो लेकिन सीटों के दृष्टिकोण से अब आधे से भी कम सीटों पर चुनाव होना शेष बचा है। अभी तक तीन चरण के मतदान में उदासीनता इसके साथ ही मतदाताओं की खामोशी इस चुनाव में सभी दलों के लिए एक चिंतनीय सवाल बनी हुई है। मतदान के पहले चरण में ही मतदाताओं में अपेक्षित उत्साह की कमी और कम मतदान प्रतिशत को राजनीतिक विशेषज्ञों और पार्टियों के द्वारा कराए गए अपने इंटरनल सर्वे के आधार पर तमाम दलों के नेताओं की बॉडी लैंग्वेज और चुनावी भाषणों तथा उनकी भाषा श्ौली तक में जिस तरह का बदलाव देखने को मिला उसका विश्लेषण भी बड़ी बारीकी के साथ विभिन्न माध्यमों से किया गया। जिसके आधार पर इंडिया गठबंधन के नेताओं में थोड़ा अतिरिक्त उत्साह और जोश देखा गया तथा सत्तारूढ़ एनडीए के खेमे में खींचतान और उदासीनता का भाव साफ महसूस किया जा रहा था। सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर तमाम रुझान भी इंडिया गठबंधन की ओर जाते दिखे वहीं तमाम समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर सत्तारूढ़ भाजपा और एनडीए के पक्ष में माहौल बनाया जाता रहा है। जहां तक मतदान प्रतिशत की बात है तो उसमें पांच से सात फीसदी तक की कमी को एनडीए के विपरीत ही माना जा रहा है। जिसके पक्ष में यह तर्क यही दिया जा रहा है कि जिन राज्यों में भाजपा या एनडीए सभी सीटें पिछली बार जीती थी वहां विपक्ष के पास खोने के लिए कुछ नहीं था अपनी पूर्व स्थिति व प्रदर्शन को दोहराने का सारा दबाव सत्ता पक्ष पर ही था। एक हद तक यह तर्क संगत भी लगता है कोई दल हर बार तो अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहरा नहीं सकता है। अब तक हुए चुनाव में समीक्षकों द्वारा एनडीए को 50 सीटों के नुकसान की बात कही जा रही है। लेकिन 4 जून को मतगणना के बाद ही इसका सच सामने आ सकेगा। ऐसा कोई पैमाना किसी के भी पास नहीं है जो यह बता सके कि किसे कितना नफा या नुकसान होगा या किसे कितनी सीटें मिलेगी। लेकिन इस चुनाव के बीच आए कुछ अदालती फैसलों और पूर्व पीएम देवगौड़ा परिवार के सेक्स कंाडों जैसी घटनाओं ने भी इस चुनाव पर गंभीर प्रभाव डाला है। इस चुनाव में कांग्रेस और इंडिया गठबंधन पहले ही दौर से ड्राइविंग सीट पर रही है। राहुल गांधी की पदयात्राओं के बाद कांग्रेस का जो घोषणा पत्र आया उसे लेकर भाजपा के नेताओं की जुबान में अभी तक इसकी चर्चाएं हैं। उनके चुनावी भाषण भी कांग्रेस के घोषणा पत्र के मुद्दों तक ही सिमट कर रह गए हैं। जो एनडीए और भाजपा के लिए चुनावी मुद्दे थे ही नहीं। वहीं विपक्षी दलों के नेता भी देश की जनता की उस नब्ज पर ही हाथ रखे हुए हैं जो बेरोजगारी, गरीबी और महंगाई के जरिए उन तक पहुंचने का रास्ता है। अब तक का चुनाव कम से कम यह बताने के लिए काफी है कि इस बार भाजपा के लिए सत्ता की राह पहले जैसी आसान रहने वाली नहीं है। मुकाबला जोरदार होगा जीतेगा कौन यह तो 4 जून को ही तय होगा।