आसान नहीं 2024 की लड़ाई

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भले ही कुछ दिन पहले तक 2024 के लोकसभा चुनाव की जंग एक तरफा प्रतीत हो रही थी लेकिन जैसे—जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है और एक के बाद एक नए मामले उग्र रूप से उभर कर सामने आते जा रहे हैं मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है। महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे जन सरोकारों पर कोई बात नहीं कर रहा था अब वह चर्चाओं के केंद्र में आते जा रहे हैं। राजनीतिक चंदे और चुनावी धांधलियों से लेकर निर्वाचन आयोग में होने वाली नियुक्तियों जैसे मुद्दों पर देश की सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा दिए जाने वाले आंख खोलने वाले फसलों तथा किसान आंदोलन व बेरोजगारों का गुस्सा सड़कों पर उतरता दिख रहा है उसने भाजपा के अंदर अब बेचैनी पैदा जरूर कर दी है। जिससे अब भाजपा नेताओं की भी यह समझ आने लगा है कि वह 2024 में अपनी जीत को जितना आसान माने बैठे हैं वह जीत उतनी आसान है नहीं। राम मंदिर निर्माण और अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम के जरिए उसने हिंदुत्व के मुद्दे और इंडिया गठबंधन में बिखराव के जरिए हासिल की थी वह अब पीछे छूटते जा रही है। बीते कल यूपी में पुलिस कांस्टेबल की लिए हुई भर्ती परीक्षा में पेपर लीक मामले में परीक्षा रद्द करने पर सरकार को विवश होना पड़ा है। इस परीक्षा में कोई धांधली न होने की बात करने वाली सरकार को यह फैसला इसलिए लेना पड़ा क्योंकि इस परीक्षा में शामिल होने वाले 48 लाख युवा सड़कों पर उतर आए और वह मोदी हटाओ, योगी हटाओ के नारों पर उतर आए। यहां यह उल्लेखनीय है कि यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा हरियाणा में अगर बेरोजगार युवकों की संख्या की बात की जाए तो 6 करोड़ के आसपास है जो मतदाता भी हैं। इन राज्यों में जो 200 से अधिक सीटें हैं अगर युवाओं के 6 करोड़ वोट इधर के उधर होते हैं तो इसका मतलब क्या होगा इस बात को सत्ता में बैठे लोग भली—भांति जानते हैं। किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए गारंटी की कानूनी मांग को लेकर पहले से ही सड़कों पर है। राहुल गांधी इन दिनों अपनी सामाजिक न्याय यात्रा में पेपर लीक और बेरोजगारी के मुद्दे पर युवाओं को झकझोरने में लगे हुए हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री के उन बयानों से कि राहुल यूपी के युवाओं को नशेड़ी बता कर सड़कों पर लेटे रहने की बात कह कर उनका अपमान कर रहे है, भाजपा की बात नहीं बन सकती है। उन्हें दो करोड़ हर साल रोजगार की बात कहकर भी अब बहकाया नहीं जा सकता है। कल पीएम मोदी ने किसानों की फसल भंडारण की बड़ी योजना की घोषणा की है। जो यह बताती है कि केंद्र सरकार किसानों की नाराजगी को लेकर भी कितनी चिंतित है। इलेक्टोरल बांड और चंडीगढ़ के मेयर चुनाव पर आए फसलों से भाजपा की छवि को कितना धक्का पहुंचा है इसकी बेचैनी भी कम नहीं है। यह बेचैनी दानदाताओं की जानकारी सार्वजनिक होने पर और भी बढ़ सकती है। इंडिया गठबंधन की जो कड़ियां एक समय में टूटती बिखरती दिख रही थी वह फिर जुड़ती जा रही है विपक्षी एक जुटता उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ाने वाली है। भाजपा ने अभी कुछ दिन पूर्व ही अबकी बार 400 पार का जो नारा दिया था वह अब बदलती स्थितियों में कतई भी आसान नहीं दिख रहा है। केंद्र की नीतियों व चंदे से लेकर अन्य तमाम मुद्दों पर जो सवाल अब उठाए जा रहे हैं उनका क्रम अगर यूं ही जारी रहता है तो 2024 में उसकी वापसी कितनी आसान रहने वाली है इसका अंदाजा भाजपा के नेताओं को हो चुका है। इसलिए एक बात तो साफ है कि 2024 का मुकाबला पिछले दो चुनावों से बहुत हटकर होने वाला है भले ही विपक्ष कितना भी कमजोर सही लेकिन लड़ाई तो असल जनता को ही लड़नी है इसलिए यह चुनाव किसी के लिए भी आसान रहने वाला नहीं है।

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