स्थाई राजधानी पर फैसला असंभव

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जब भी चुनाव आते हैं राज्य की स्थाई राजधानी का मुद्दा चर्चाओं में आ जाता है और चुनाव होते ही इसे कुछ समय के लिए भुला दिया जाता है बीते 20 साल में सूबे की सरकारें और नेता इस मुद्दे पर राजनीति तो करते आ रहे हैं मगर इसका कोई समाधान नहीं कर सके हैं। राज्य की दो राजधानी बन चुकी है तथा दो विधानसभा भवन की बन चुके हैं तथा तीसरे विधानसभा भवन के निर्माण के लिए जद्दोजहद जारी है लेकिन अब तक राज्य की स्थाई राजधानी पर फैसला नहीं लिया जा सका है। आंदोलन के समय से राज्य के लोग पहाड़ की राजधानी पहाड़ में बनाये जाने को लेकर भावनात्मक रूप से संजीदा रहे हैं उन्होंने इसके लिए कई आंदोलन तक किए हैं लेकिन हैरानी की बात है कि सूबे के नेता और सत्ता में बैठे लोग राज्यहित और जनहित में हर फैसला लेने का दावा तो करते रहे हैं मगर राज्य की स्थाई राजधानी के मुद्दे पर उन्होंने जन भावनाओं की कभी कदर नहीं की है। हां इस पर राजनीति करने में न बीजेपी पीछे रही और न कांग्रेस। 2012 में जब विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तो उसने इसका श्रेय लेने के लिए गैरसैण में विधानसभा भवन की नींव रखकर प्रदेशवासियों को यह संदेश देना चाहा कि वहीं है जो पहाड़ की राजधानी बना सकते हैं। लेकिन उसने अपने पूरे कार्यकाल में यह नहीं तय किया और बताया कि गैरसैंण में राज्य की स्थाई राजधानी बनाई जा रही है। उसके बाद आई भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार ने गैरसैंण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर इसका श्रेय लेने की कोशिश की। कांग्रेस अगर चाहती तो गैरसैंण को राज्य की स्थाई राजधानी घोषित कर इस अध्याय को बंद कर सकती थी और भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार भी इसे ग्रीष्मकालीन की जगह स्थाई राजधानी घोषित कर सकती थी। अब कांग्रेसी नेता गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने की बात कर रहे हैं वहीं भाजपा इसे ग्रीष्मकालीन राजधानी ही बनाए रखने के पक्ष में है। सवाल यह भी है कि अगर गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी है तो फिर शीतकालीन राजधानी कहां है देहरादून को ऑन पेपर अस्थाई राजधानी ही माना जाता था अगर देहरादून शीतकालीन राजधानी है तो फिर इसका फैसला संवैधानिक रूप से किया जाए। एक सवाल यह भी है कि इस 13 जनपद के छोटे से राज्य को क्या दो राजधानियों की जरूरत है अगर नहीं है तो दून या गैरसैंण में से किसी भी एक को स्थाई राजधानी घोषित करने में क्या दिक्कत है। इस स्थाई राजधानी के मुद्दे को नेता व राज्य की सरकारेंं क्यों उलझायें रखना चाहती है। तीसरी विधानसभा की राज्य को क्या जरूरत है दून में जब एक विधानसभा भवन मौजूद है तो फिर नए विधानसभा भवन बनाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है। देहरादून में नया विधानसभा भवन बनाने का मतलब साफ है कि गैरसैंण को कभी स्थाई राजधानी बनाने की कोई गुंजाइश नहीं है राज्य की अब दो ही राजधानियां रहेगी एक दून में और एक गैरसैण में। ऐसे में बेहतर हो कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के बाद दून को भी अब अस्थाई राजधानी की बजाय शीतकालीन राजधानी घोषित कर दिया जाए और राज्य की स्थाई राजधानी के मुद्दे को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाए। भले ही उत्तराखंड के लोगों की यह दिली चाहत रही हो कि पहाड़ की राजधानी पहाड़ में हो लेकिन सूबे के नेता और राजनीतिक दल कतई भी यह नहीं चाहते हैं। यह एक ऐसा सच है जिसे कोई नेता या दल स्वीकार करने को तैयार नहीं है उन्हें अब देहरादून ही सबसे ज्यादा रास आता है। यही वजह है कि उन्होंने पहाड़ को छोड़कर दून में अपने आशियाने बना लिए हैं उन्हें गैरसैंण में गाहे—बगाहे होने वाले विधानसभा सत्रों में आना—जाना भी बहुत खलता है बीते 9 सालों में या सिर्फ 30 दिन विधानसभा सत्र चलना इसकी गवाही देता है। यह अलग बात है कि गैरसैंण राजधानी पर बात अब तक इतनी आगे बढ़ चुकी है कि कदम पीछे नहीं खींचें जा सकते हैं। वरना यह नेता राज्य की एक ही स्थाई राजधानी देहरादून को ही बना डालते। लेकिन अब इस पर राजनीति को विराम देकर सूबे के नेताओं को इसका सर्वमान्य कोई फैसला कर लेना चाहिए जिससे यह मुद्दा चुनाव पर हावी न हो।

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