ज्ञान ध्यान व आशावाद

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आम लोगों को अब यह राय देते दिख रहे हैं कि मिली जुली यानी गठबंधन की सरकार किसी भी सूरत में अच्छी नहीं होती है ऐसी सरकारों में निर्णय लेने की क्षमता और शासन का अभाव तो होता ही है साथ ही तुष्टिकरण की राजनीति भी हावी रहती है। गठबंधन सरकारों में राजनीतिक स्थिरता का भी सर्वथा अभाव होता है जो देश और समाज के लिए हितकारी नहीं होता है निसंदेह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सोच से देश का कोई भी नागरिक सहमत हो सकता है। देश के लोगों ने पिछले चार—पांच दशकों में मिली जुली सरकारों के तमाम अनुभव किए हैं। जोड़ तोड़ की राजनीति के कारण एक—एक दिन के कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री देखे हैं और चंद महीनों वाले प्रधानमंत्री भी देखे हैं। यही नहीं इस देश के लोग वर्तमान के उसे दौर को भी देख रहे हैं जहां एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार को लंगडी मारकर सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है तथा सत्ता पर कब्जा कर लिया जाता है। ऐसी स्थिति में देश के लोगों को राजनीति के चरित्र और चित्र पर किसी भी तरह की शिक्षा दिए जाने की शायद कोई जरूरत नहीं रह जाती है। देश के नेताओं ने अगर 75 साल नेतागिरी की है तो देश के लोगों ने 75 साल की राजनीति देखी है और उससे उन्होंने भी बहुत कुछ सीख समझ लिया है। देश के लोगों ने जातिवाद व और क्षेत्रवाद के साथ सांप्रदायिक उन्माद की राजनीति के ऐसे कठिन दौर भी देखें है जिसकी शायद कभी कल्पना भी नहीं की होगी। हिंसा, आगजनी और तोड़ फोड़ के अनेक ऐसे अध्याय देश के इतिहास में शामिल है जो राजनीतिक कारणों से लिखे गए हैं समय के साथ देश में बहुत कुछ बदला है और आगे भी बदला जाता रहेगा। लेकिन देश का लोकतंत्र जो अभी भी कायम है अगर कायम है तो उसे कायम रखने में इस देश की जनता की ही सबसे अहम भूमिका रही है बीते कुछ दशकों में गठबंधन की राजनीति ने भी देश के लोकतंत्र को बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। देश का कोई राजनीतिक दल या नेता अगर स्वयं को सर्वशक्तिमान और संविधान तथा लोकतंत्र से भी ऊपर समझता है तो यह उसकी भूल ही कहीं जा सकती है। बीते 10 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश और समाज हित में अनेक बड़े काम और फैसले किए हैं जिन्होंने न सिर्फ उनकी छवि को ग्लोबल स्तर पर बुलंदियों तक पहुंचाया है बल्कि राष्ट्र व समाज को उसका फायदा मिला है किंतु राजनीति के इस बदलते परिवेश में जनकल्याण की नीतियों के नाम पर देश की जनता के सामने जो परोसा जा रहा है वह न राष्ट्रहित में उचित है न जनहित में। मुफ्त की रेवड़ियों की राजनीति के इस बढ़ते चलन का हश्र क्या होगा इसे देश के नेता और राजनीतिक दल अच्छी तरह जानते समझते हैं साथ ही इन मुफ्त की सुविधाओं और नगदी का उपयोग कर रही जनता भी जानती है। मुफ्त का राशन, बिजली, पानी, घर, इलाज और ऊपर से नगदी भी जनता को जिस तरह बांटी जा रही है वह राष्ट्रीय धन का अपव्यय ही नहीं है अपितु जनता को गरीब व दीन बनाए रखने का एक बड़ा राजनीतिक षड्यंत्र भी है। प्रधानमंत्री मोदी देशवासियों को एक तरफ विकसित भारत का सपना दिखा रहे हैं वहीं दूसरी ओर उन्हें अपनी हर छोटी बड़ी जरूरत के लिए सरकार पर निर्भरता के लिए मजबूर कर रहे हैं। गरीब अपना घर बनाने में खुद सक्षम हो, वह अपना पेट भरने के लिए खुद कमा सकता हो और अपना इलाज खुद कर सके इसकी व्यवस्था अगर वह अपने 10 साल के शासन में करते तो शायद यह विकसित भारत की ओर बढ़ने में ज्यादा मददगार साबित होता। लेकिन प्रधानमंत्री तो अपने ज्ञान और ध्यान के फार्मूले पर भरोसा रखते हैं जिनके दम पर वह सत्ता में है और आगे भी बने रहने की इच्छा रखते हैं। अब 2024 के चुनाव के लिए उन्होंने ज्ञान पर ध्यान देने से विकसित भारत का फार्मूला खोजा है जिसके अनुसार जी फिर गरीब व वाइ फार युवा, ए फार अन्नदाता और एन फार नारी शक्ति होता है। उनका यह ज्ञान का फार्मूला उन्हें और उनकी पार्टी को इस बार 400 पार भी ले जा सकता है। हो सकता है कि विपक्ष के लिए उतनी सीटें भी लोकसभा में न रहे जितने (146) सांसद निलंबित किए गए थे। प्रधानमंत्री विकसित भारत को लेकर भले ही कितने भी कम आशावादी हो लेकिन 2024 को लेकर उनका आशावाद आसमान पर जरूर है।

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