वायु प्रदूषण बड़ी समस्या

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भले ही हर साल दिल्ली एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर अधिक चर्चा होती हो लेकिन प्रदूषण पूरे देश के लिए एक अति गंभीर समस्या बनता जा रहा है। खासतौर पर देश के तमाम बड़े शहरों में प्रदूषण की यह समस्या अब जानलेवा स्तर पर जा पहुंची है इसलिए प्रदूषण की इस समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने जो चिंता जताई है उसे बेवजह नहीं माना जा सकता है। देश की राजधानी प्रदूषण की मार से सर्वाधिक प्रभावित है। पराली जलाने पर रोक से लेकर दिल्ली सरकार द्वारा ईजाद किया गया आड ई वन का फार्मूला भी बेनतीजा साबित हो चुका है ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट यह कहता है कि हम लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ सकते तो इस बात पर गहन मंथन किया ही जाना चाहिए कि इस बढ़ते वायु प्रदूषण के अहम कारक क्या है। क्या पराली जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है? न्यायालय दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व राजस्थान में पराली जलाने पर सख्त प्रतिबंधों की पैरवी जरूर की है लेकिन इस पराली जलाने से ज्यादा प्रदूषण कारों और अन्य वाहनों से फैलता है इस सच को न तो कोई स्वीकार करने को तैयार है और न इस पर चर्चा के लिए। भारत में वायु प्रदूषण बढ़ने की दूसरी बड़ी वजह थर्मल पावर प्लांट है। ग्रीन पीस की रिपोर्ट के अनुसार कोयला आधारित इन थर्मल प्लांट द्वारा उत्सर्जन मानकों का अनुपालन ठीक से किया जाए तो सल्फर डाइऑक्साइड के लेवल में 48 फीसदी और नाइट्रोजन ऑक्साइड के स्तर में 48 फीसदी और पीएम के स्तर पर 40 फीसदी तक की कमी की जा सकती है। अब सवाल यह है कि आप कार की सवारी भी नहीं छोड़ सकते हैं और बिजली के बिना भी कुछ घंटे नहीं रह सकते ऐसी स्थिति में फिर आपको चावल खाना ही छोड़ना पड़ेगा या फिर खुद और अपने बच्चों को प्रदूषण जनित बीमारियों से मरने के लिए तैयार रहना होगा। एक रिपोर्ट के अनुसार बीते साल देश में 1.16 लाख बच्चों की मौत वायु प्रदूषण के कारण हुई जिन में 50 फीसदी मौतें पीएम 2.5 के कारण यानी माइक्रो से काम आकर के कणों के कारण हुई। इस बढ़ते वायु प्रदूषण का सबसे अधिक असर बुजुर्ग और दमा रोगियों या फिर बच्चों पर हो रहा है। अब बात आती है इस समस्या को लेकर हम और हमारा समाज कितना जागरूक है। जब भी ईद और दिवाली जैसे त्योहार आते हैं तब पटाखे और आतिशबाजी के बिना हम नहीं रह पाते हैं न जाने क्यों लोगों को पटाखों के बिना यह त्यौहार त्यौहार नहीं लगता। हर साल की तरह इस साल भी दीपावली से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी राज्यों से पटाखों पर प्रतिबंध लगाने को कहा गया है लेकिन यकीन मानिए इस बार दिवाली पर बीते साल से भी ज्यादा पटाखे फोड़े जाएंगे खास बात यह है कि यह पटाखे बच्चों द्वारा कम युवा और वयस्कों व बूढ़ों द्वारा अधिक पटाखे फोड़े जाते हैं। भले ही सुप्रीम कोर्ट का यह कहना हो कि प्रदूषण की रोकथाम करने की जिम्मेदारी सिर्फ अदालतों की नहीं है। समाज के हर आदमी को अपनी जिम्मेवारी समझनी चाहिए मगर अभी हम इतने समझदार कब होंगे इसका पता नहीं है पर्यावरण सुरक्षा और प्रदूषण की रोकथाम के लिए तमाम नियम और कानून तथा जन जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद हम अपने आप में अगर कोई सुधार करने को तैयार नहीं है तो हमें इस समस्या से कोई भी मुक्ति नहीं दिला सकता है।

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