लो मिल गया आरक्षण

0
284


कई दशकों तक विरोध और राजनीतिक दांव पेंचों के बीच हिचकोले खाता रहने वाला महिला आरक्षण बिल आखिरकार संसद से पारित हो ही गया। 2024 के आम चुनाव से पूर्व लाये गए इस विधेयक को संसद की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाना और उस पर राष्ट्रपति भवन की मोहर लगना अब एक औपचारिकता भर शेष रह गई है। इसके बाद यह विधेयक कानून का रूप ले लेगा। निश्चित तौर पर यह महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने में भी मील का पत्थर साबित होगा भले ही अभी इसके राजनीतिक लाभ मिलने में कुछ समय जरूर लगेगा लेकिन इस बिल को संसद से मंजूरी मिलते ही यह जरूर सुनिश्चित हो चुका है कि एक न एक दिन देश की संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की बराबरी की उपस्थित दिखाई देगी। इस बिल पर हुई चर्चा के दौरान तमाम विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा महिलाओं को 33 के बजाय 50 फीसदी आरक्षण देने की पैरोकारी की गई। देश की आधी आबादी को 50 फीसदी आरक्षण देने का तर्क भले ही वाजिब सही लेकिन 33 फीसदी से ज्यादा संख्या में महिलाएं लोकसभा या राज्य विधानसभा में चुनकर नहीं जा सकती हैं ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। उनकी संख्या 50 और इससे भी अधिक प्रतिशत हो सकती है। आने वाले समय में हमें यह संसद से लेकर विधानसभाओं तक में देखने को मिलेगा कि जब सदन में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक होगी। इस आरक्षण का लाभ केवल राजनीतिक घरानो तक ही सीमित न रहे यह एक अहम सवाल जरूर है। क्योंकि देश की आम महिलाओं को राजनीति से ज्यादा सरोकार नहीं होता है तथा उनके पास चुनाव में खर्च करने के लिए धन का भी अभाव होता है ऐसी स्थिति में उन्हें राजनीति में हाथ आजमाने के मौके कम ही मिल पाएंगे वह या तो किसी राजनीतिक दल की मेहरबानी या अपने राजनीतिक परिवार की मेहरबानी से ही आगे बढ़ पाएंगी? लेकिन अब उनके आगे बढ़ने का रास्ता जरूर प्रशस्त हो गया है, भले ही वह धीमी गति से आगे बढ़ पाए? लेकिन आने वाले दिनों में देश की राजनीति में महिलाओं की सिर्फ भागीदारी ही नहीं बढ़ेगी उनका वर्चस्व भी बढ़ेगा इस बिल को लोकसभा में पेश किए जाने से पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ईश्वर ने इस पवित्र कार्य के लिए उन्हें ही चुना है। उनका यह वक्तव्य श्रेय की राजनीति नहीं था तो क्या था? इस बिल को लाने के लिए पूर्व समय में कब—कब किस—किसने क्या प्रयास किया अगर उन पर नजर डाली जाए तो यही पता चलता है कि यह बिल सभी के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है इस बिल का समूचे विपक्ष द्वारा समर्थन किया जाना भी यही दर्शाता है। मोदी सरकार द्वारा इस बिल को जानबूझकर रणनीतिक तरीके से ऐसे समय में लाया गया है जिसका 2024 के चुनाव में उसे लाभ मिल सके। विपक्षी दलों ने भी इसे समर्थन इसलिए दिया है क्योंकि वह आधी आबादी का विरोध मोल लेने का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और 2024 के चुनाव व परिणाम से ही पता चल सकेगा कि इसका किसे कितना लाभ मिल सका और किसे कितना नुकसान हुआ फिलहाल भाजपा अपनी इस जीत पर खुश है और वह इसे एक मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देख रही है। अच्छा होता कि सरकार इसे तुरंत लागू करने का भी समाधान निकालती जिंससे इसे लेकर उठ रहे तमाम सवालों का भी जवाब मिल पाता।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here