जी—20 सम्मेलन की सफलता

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ट्टवसुधैव कुटुंबकम’ के अपने मूल भाव और संस्कृति की पृष्ठभूमि को सामने रखकर भारत की अध्यक्षता में संपन्न हुए जी 20 के 17वें शिखर सम्मेलन को सफल बनाने में भारत ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। भारत जितनी तेजी से विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत बनने की ओर अग्रसर है वहीं वह विश्व कल्याण की अपनी सामाजिक सोच के साथ विश्व का नेतृत्व करने (विश्व गुरु) बनने की ओर भी कदम बढ़ा चुका है। इस महासम्मेलन में भाग लेने आये तमाम उन विकसित पश्चिमी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह भारत की नीतियों, कृतियों से लेकर सामाजिक और आर्थिक उन्नति की सराहना करते हुए इस बात को स्वीकार किया कि भारत की क्या महत्ता है उससे कोई भी खुश हो सकता है। वन अथर्, वन फैमिल ,वन फ्यूचर की थीम की सोच के साथ किए गए इस आयोजन में लिए गए फैसले और की गई चर्चा इसका सबूत है कि भारत सिर्फ कहने भर तक सीमित नहीं है। धरातल पर भी वैसे प्रयासों को आगे बढ़ाया जाता दिख रहा है। भारत से यूरोप तक आर्थिक गलियारा बनाए जाने का फैसला अगर तमाम यूरोपीय देश ऐतिहासिक बता रहे हैं तो यह बेवजह नहीं है। यही नहीं इस सम्मेलन में विश्व राष्ट्रों के आर्थिक सहयोग, पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान, आतंकवाद और उसको बढ़ावा देने वालों के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का संकल्प, गरीब देश की आर्थिक मदद और भ्रष्टाचार के खिलाफ वैश्विक स्तर पर जंग लड़ने के लिए मजबूत सूचना तंत्र, बेरोजगारी से निपटने और महिलाओं के सशक्तिकरण और उनकी सामाजिक भागीदारी तक तमाम अहम मुद्दों पर होने वाली सार्थक चर्चा जिसे दिल्ली के घोषणा पत्र में सभी देशों ने आम सहमति के साथ स्वीकार किया है वह इस महासम्मेलन की बड़ी कामयाबी है। अफ्रीकी संघ का इस जी 20 देशों में शामिल होना इस बात का साफ संकेत है कि इस जी—20 के राष्ट्रो का कुटुंब अब इतना विस्तार पा चुका है कि पूरी दुनिया की समस्याओं का निराकरण की क्षमता जी 20 जो अब जी 21 हो गए हैं में निहित है। इस सम्मेलन में नई दिल्ली के घोषणा पत्र की स्वीकृति को लेकर तमाम तरह के कयास लगाये जा रहे हैं क्योंकि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के मुद्दे विश्व के तमाम राष्ट्रों को दो अलग—अलग विचारधाराओं के साथ खड़ा कर दिया था। रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर कोई फैसला भारत के लिए भी आसान नहीं था एक तरफ रूस की मित्रता और अमेरिका के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखने की चुनौती थी तो दूसरी तरफ जी—20 के सभी देशों को साधने की लेकिन भारतीय राजनायको द्वारा जो मसौदा (प्रस्ताव) तैयार किया गया है उसे पहले ही दिन सभी सदस्य देशों की सहमति मिलना एक अति सुखद अहसास था। इस आयोजन की सफलता से विश्व भर के देशों में न सिर्फ भारत की स्वीकार्यता बड़ी है बल्कि उन्हें आज भारत की सभ्यता और संस्कृति को और करीब से देखने और समझने का मौका मिला है यह तमाम राष्ट्राध्यक्ष अगर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समाधि स्थल पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए पंक्तिबद्ध खड़े थे तो यह भारतीय लोकतंत्र उसकी संस्कृति व सोच और राजनीतिक तथा सामाजिक स्थिति की स्वीकार्यता पर मोहर लगाने के लिए काफी है। आज पूरा विश्व भारत की ओर इस आशवन्तित दृष्टिकोण से देख रहा है कि भारत विश्व का नेतृत्व करें। यह देश के लिए गौरव की बात है।

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