उपचुनाव नतीजे का संदेश

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भले ही बागेश्वर उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी पार्वती दास ने बाजी मार ली हो लेकिन इस जीत पर पार्वती दास और भाजपा को बहुत खुश होने की जरूरत नहीं है। यह सिर्फ और सिर्फ उस सहानुभूति की जीत है जो उनके पति और पूर्व मंत्री चंदन रामदास के प्रति आदर के रूप में उपजी है। चंदन रामदास को सच्ची श्रद्धांजलि देकर बागेश्वर की जनता ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है। अब देखना यह है कि क्या पार्वती दास चंदन दास की उस लोकप्रियता की सुरक्षा और संरक्षण की हिफाजत कर पाएगी जो उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में अर्जित की थी। चंदन रामदास चार बार लगातार इस एक ही सीट से चुनाव जीते थे पिछले चुनाव में उन्होंने 12 हजार से भी अधिक मतों से जीत दर्ज की थी लेकिन इस चुनाव में पार्वती दास सिर्फ 24 सौ वोटो से जीत पाई है। भले ही आप अपने मन को समझाने के लिए यह तर्क दे सकते हैं की जीत तो जीत ही होती है भले ही 10 मतों से क्यों न हो लेकिन इस जीत को लेकर जो मामूली अंतर से हुई है अभी से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या भाजपा आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में पार्वती दास को टिकट दे सकेगी और क्या वह इस सीट पर चुनाव जीत पाएगी? बागेश्वर उपचुनाव का नतीजा जीत के बाद भी भाजपा के लिए कोई बड़ा सुकूनदेह नहीं है क्योंकि भाजपा नेताओं को यहां बड़े मार्जिन वाली जीत की उम्मीद थी। सच कहा जाए तो चुनाव के अंतिम क्षणों में अगर सीएम धामी उनकी जनसभाओं में नहीं गए होते जिनमें पार्वती दास को भावुक होते हुए और सीएम को ढांढस से बताते हुए अगर लोगों ने नहीं देखा होता तो पार्वती दास की यह जीत हार में भी बदल सकती थी। वहीं कांग्रेस के लिए भी यह हार कई सारे सवाल अपने पीछे छोड़ गई है भले ही हार जीत का फासला कम रहा हो लेकिन यह हार कांग्रेस जीत में भी बदल सकती थी। कांग्रेस ने बसंत कुमार को चुनाव मैदान में उतार कर जो कल्पना की थी कि मुख्य चुनाव में आप के प्रत्याशी रहे बसंत कुमार को मिले मतों को अगर कांग्रेस प्रत्याशी के मतों में जोड़ दिया जाए तो कांग्रेस जीत पक्की कर सकती है। यह हो भी सकता था लेकिन भाजपा ने चुनाव दौर में कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी को भाजपा में खींचकर कांग्रेस के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। प्रत्याशी चाहे किसी भी पार्टी का हो हर नेता का अपना एक निजी वोट बैंक जरूर होता है। कांग्रेस को उसके पूर्व प्रत्याशी के भाजपा में जाने से भी भाजपा की जीत का रास्ता आसान हुआ है। खैर अब जो होना था वह तो हो चुका है लेकिन इस उप चुनाव के नतीजे ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही सतर्क जरूर कर दिया है। आने वाले लोकसभा चुनाव की दृष्टि से इसे एक लिटमस टेस्ट बताने वाले अब उलझन में पड़ गए हैं और उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है कि इस चुनाव के नतीजे को वह कैसे देखें। इसे देखकर तो यह लगता है कि बागेश्वर उपचुनाव की तरह लोकसभा की भी सभी पांचो सीटों पर मुकाबला ऐसा ही संघर्षपूर्ण रहने वाला है।

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