कैसे भरेंगे आपदा के जख्म?

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अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला उत्तराखंड राज्य बीते दो माह से मानसूनी आपदा की मार झेल रहा है। अब तक राज्य में भारी बारिश के चलते भारी नुकसान हो चुका है कृषि और पर्यटन दोनों ही चौपट हो चुके हैं वही व्यावसायिक गतिविधियां भी लगभग ठप हो चुकी है। मानसूनी आपदा ने राज्य की सड़कों को तहस—नहस कर दिया है और दर्जनों पुल तथा पुलियाओं के टूटने से लोगों के आवागमन पर भारी प्रभाव पड़ा है। अब लोग यह सोचकर परेशान है कि अभी मानसूनी सीजन का जो एक माह शेष बचा है उसमें भी अगर ऐसे ही हालात बने रहते हैं तो क्या होगा। हर बार मौसम विभाग द्वारा अगले दो—चार दिन के लिए भारी बारिश का अलर्ट जारी कर दिया जाता है। जिस तरह के मौसम का मिजाज बीते 2 महीनों से बना हुआ है उसे देखते हुए यह साफ हो चुका है कि अभी इस मुसीबत से छुटकारा आसान नहीं है। उत्तराखंड में रेलवे व हवाई नेटवर्क तो है नहीं एकमात्र सड़कों पर टिकी आवागमन की व्यवस्था भी अगर ठप हो जाए तो स्थिति क्या होगी इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। इस मानसूनी सीजन में कोई भी दिन ऐसा नहीं रहा है जब राज्य की दो ढाई सौ सड़के बंद न रही हो। आज भी राज्य की तमाम प्रमुख सड़कों सहित सवा दो सौ से अधिक सड़कों पर आवागमन पूरी तरह से तप है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इन सड़कों के बंद होने से राज्य की सप्लाई लाइन ही कट चुकी है। क्षेत्रीय बाजारों पर निर्भर रहने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का बाजार तक पहुंचना मुश्किल हो गया है वहीं बाजारों में भी जरूरी सामान नहीं पहुंच पा रहा है जरूरी सामान की कमी के कारण जो मिल भी रहा है वह ओने पौने दामों पर मिल रहा है। चारधाम यात्रा जिससे लोग अपने पूरे साल के खाने खुराक का इंतजाम कर लेते थे अब पूरी तरह से ठप पड़ी है। वहीं कृषि उपज को भी बाजारों तक पहुंचाना संभव नहीं हो पा रहा है जिसका दोहरा नुकसान राज्य के लोगों को हो रहा है बात अगर मैदानी भागों की की जाए तो पहाड़ पर हुई अतिवृष्टि के कारण मैदानी क्षेत्रों में कृषि क्षेत्र को बाढ़ और जल भराव के कारण सबसे अधिक नुकसान हुआ है आवासीय क्षेत्र में जल भराव के कारण लाखों घरों को नुकसान पहुंचा है। स्कूल कॉलेज तक बंद पड़े हैं और छात्रों की पढ़ाई भी नहीं हो पा रही है। सवाल आज वर्तमान में होने वाली परेशानी या नुकसान का नहीं है सवाल उस भविष्य का है जिसकी दुश्वारियो की दस्तक अभी से सुनाई दे रही है। जो पुल और सड़के इस आपदा से बर्बाद हो चुकी हैं क्या उन्हें अगले मानसूनी सीजन तक दुरुस्त कर लिया जाएगा यह सवाल सबसे बड़ा सवाल है। भले ही केंद्र सरकार द्वारा इस काम में भरपूर आर्थिक मदद की जा रही हो लेकिन यह काम आसान काम नहीं है। वैसे भी इस चुनावी साल में शासन प्रशासन और सरकारी मशीनरी को दूसरे कामों में जुटाया जा रहा है। चुनाव आचार संहिता के कारण महीनो तक कोई काम नहीं हो पाएगा। यही कारण है कि आपदा से हुए नुकसान की भरपाई में कई साल का समय लग सकता है। अभी मानसूनी काल में संक्रामक बीमारियों से निपटने की चुनौती भी सामने खड़ी है। इन तमाम स्थितियों से जूझ रहे पहाड़ के लोगों को इन समस्याओं से निजात कब और कैसे मिल पाएगी? इसे लेकर पहाड़ के लोग इन दिनों सबसे अधिक चिंतित है।

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