भारतीय संस्कृति का मूल योग

0
238


आज समूचे विश्व राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रहे हैं। योग को जबसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया इस भारतीय योग संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय पटल पर न सिर्फ एक नई पहचान मिली है अपितु यह कहना अनुचित या अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विश्वभर में भारतीय संस्कृति का डंका बज रहा है और विश्व के तमाम विकासशील देश भी इस भारतीय योग संस्कृति के मुरीद हो गए हैं। अमेरिका दौरे के दौरान अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भारत की विकास यात्रा पर बोलते हुए जहां तमाम विकास योजनाओं का जिक्र किया गया वहीं उन्होने योग का उल्लेख करते हुए कहा कि यह भारत के गर्व का विषय है, जो योग भारत की सीमाओं तक सीमित था आज उस योग की महत्ता को विश्व के लाखों—करोड़ो लोगों ने न सिर्फ अपनाया है अपितु अपनी जीवनश्ौली का हिस्सा बनाया है, तथा इससे लाभान्वित हो रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि योग के अंतर्गत मानव जीवन और मानवीय संस्कृति के उत्थान का रहस्य निहित है। हमारे ग्रंथों में योग के बारे में अनेक उल्लेख मिलते हैं लेकिन महर्षि पतंाजलि ने योग को विस्तार पूर्वक प्रतिपादित किया है। आमतौर पर हर आदमी ने यह जरूर सुना होगा कि ट्टयोग रखे निरोग’ लेकिन यह योग की परिभाषा का एक अंश मात्र है योग से किसी आदमी के सिर्फ रोगों का उपचार ही संभव नहीं है अपितु योग समाज की दिशा और दशा को दुरुस्त रखने की एक सशक्त विघा है। हिंदी भाषा के इस योग शब्द का अर्थ जोड़ होता है। जोड़ यानी एक संख्या में दूसरी संख्या को जोड़ने से उसकी क्षमता में वृद्धि का होना। योग का प्रयोग तन मन धन और धर्म तथा कर्म किसी के साथ भी किया जाए उसकी समृद्धि और उसका सशक्तिकरण और सुनिश्चित है। योग के अनेक विधाओं का जिक्र भारतीय शास्त्रों में मिलता है। गीता में भगवान कृष्ण द्वारा कर्म योग के जिस अध्याय का उल्लेख किया गया है उस कर्म योग के बारे में हर एक भारतीय अच्छे से जानता है। कर्म योगी व्यक्ति के लिए इस धरती पर कुछ भी असाध्य नहीं है। धर्म योग का महत्व भी कर्म योग से कम नहीं है। महाभारत के दुर्याेधन ने भी युद्ध भूमि में कर्म योग के निर्वहन में किसी तरह की कमी उठाकर नहीं रखी थी लेकिन धर्म योग से विरत रहकर किए गए कर्म योग के कारण ही उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा था तथा अपना सर्वस्व विनाश का कारण बनना पड़ा था। योग्य को अध्यात्म की पहली सीढ़ी कहा जाता है। जो अब विश्व राष्ट्रों के लिए आध्यात्मिक का सबसे प्रमुख केंद्र बन चुका है और विश्व के तमाम राष्ट्र भारतीय अध्यात्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं तो यह योग अध्यात्म का ही चमत्कार है। आज तमाम देशों के लोग मानसिक शांति की तलाश में भारत आते हैं और भारत की योग तथा आध्यात्म की बारीकियों को जानने समझने का प्रयास करते हैं। कई लोग तो यहां आकर यहीं के होकर रह जाते हैं। योग के बिना जिस अध्यात्म के रास्ते पर एक पल भी कोई आगे नहीं बढ़ पाता है उस योग की महत्ता को भला कोई कैसे नकार सकता है। योग सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखने में ही सहायक सिद्ध नहीं होता है अपितु मन और मस्तिष्क को स्वस्थ और सुंदर रखता है। हमारे शास्त्रों में तन मन और मस्तिष्क की सुंदरता और उसको स्वस्थ रखने के बारे में ही नहीं बताया गया है बल्कि जीवन के चरम उत्कृष्ट तक पहुंचने के लिए इसकी अनिवार्यता को रेखांकित किया गया है। योग की महत्ता के उल्लेख के साथ यह कहा जाना भी जरूरी है कि भले ही हम अपनी संस्कृति के मूल का महत्व पूरे विश्व को समझा रहे हो लेकिन अपनी जीवन पद्धति से हमने योग को अभी अलग—थलग रखा हुआ है और उससे भी दुखद बात यह है कि हम इसकी उपयोग समाज और राष्ट्र कल्याण के लिए कम और व्यवसाय के रूप में अधिक कर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here