उत्तराखंड की भर्ती घोटालों को लेकर भले ही मुख्यमंत्री धामी ने डैमेज कंट्रोल के प्रयासों में कोई कमी उठाकर नहीं रखी गई हो लेकिन उत्तराखंड के युवाओं के साथ कितना बड़ा विश्वासघात और धोखा हुआ है? उसकी भरपाई सरकार के किसी भी प्रयास से नहीं हो सकती है और न ही भाजपा को दोष मुक्त किया जा सकता है। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ राकेश शर्मा के इस्तीफे के बाद बीते 100 दिनों से धरना प्रदर्शन कर रहे बेरोजगार संघ की जो प्रतिक्रिया आई है वह इस बात का सबूत है कि राज्य के युवा इस विश्वासघात और धोखे के लिए कतई भी बख्शने के मूड में नहीं हैं उनका साफ कहना है कि डॉ राकेश शर्मा को बहुत पहले अपना इस्तीफा दे देना चाहिए था। उनका कहना है कि उन्हें देर से ही सही अपनी गलती समझ में आ गई अच्छा है, लेकिन मुख्यमंत्री धामी को अपनी गलती कब समझ में आएगी? उन्होंने मुख्यमंत्री धामी से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की मांग करते हुए कहा है कि इस भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच से सरकार क्यों बच रही है? क्योंकि सत्ता में बैठे लोगों को पता है कि अगर ऐसा हुआ तो उनके कई नेता फस जाएंगे? डॉक्टर शर्मा ने भले ही अपने इस्तीफे का कारण निजी और पारिवारिक बताया हो लेकिन लेखपाल और जेई—एई परीक्षा में गड़बड़ी का खुलासा होने और लोक सेवा आयोग के दो अनुभाग अधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद से इस आयोग के चेयरमैन स्वयं को असहज जरूर महसूस कर रहे थे। खैर उनका इस्तीफा स्वीकार हो गया और वह अब कर्तव्य मुक्त हो चुके हैं लेकिन मुख्यमंत्री धामी तो यह भी नहीं कर सकते हैं। भर्ती घोटालों की परतें उधड़ने के बाद भाजपा और धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने इस असहाय स्थिति से उबरने के लिए ताबड़तोड़ फैसले लिए इन घोटालों की जांच और आरोपियों की गिरफ्तारियों से लेकर उनकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलवाने से लेकर कुर्की तक सब कुछ एक साथ देखने को मिला। सरकार ने भविष्य में इस तरह के घोटालों की पुनरावृति रोकने के लिए एक सख्त नकल विरोधी कानून लाने में भी पूरी चुस्ती फुर्ती दिखाई। और तो और भर्ती घोटालों के खिलाफ किए जाने वाले कामों का ढोल पीटने में भी कोई कमी उठाकर नहीं रखी गई। भाजपाइयों ने सीएम के कामों की सराहना का प्रसार उस हद तक ले जाया गया जब प्रदेश में इसे लेकर सम्मान और आभार रैलियां निकाली गई। बात चाहे अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की हो या फिर लोक सेवा आयोग की जिसका ढांचा अब पूरी तरह से बदला जा चुका है। लेकिन इन आयोगों के माध्यम से होने वाली तमाम भर्तियों में हुई धांधली के दाग इतने गहरे हैं कि उन्हें धोया जाना संभव नहीं है। इन आयोगों के अलावा आउट सोर्स एजेंसियों तथा विधानसभा व सचिवालय में हुई बैक डोर भर्तियों ने इन राज्य के युवाओं के मन में इस बात को ठूंस—ठूस कर भर दिया है कि नेताओं और अधिकारियों ने उनके साथ जो कुछ किया है वह एक ऐसा जघन्य अपराध है जिसके लिए उन्हें किसी भी कीमत पर माफ नहीं किया जा सकता है। हो सकता है आज वर्तमान के प्रयास आने वाली पीढ़ी को कुछ राहत देय साबित हो लेकिन जिसकी सरकारी नौकरी के लिए आयु सीमा पूरी हो गई उनका तो कैरियर व जीवन पूरी तरह तबाह हो ही गया। इसलिए इन बेरोजगारों के गुस्से को गलत नहीं ठहराया जा सकता है।